Saturday 25 February 2012

आवारा मिलंद

मंद-मंद मकरंद मधुर,
ले रहा आनंद.
नव , नवीन, नूतन, नवल,
प्रिय विभा के संग.
पुष्प पुट में बैठ अलि,
छेड़ रहा तरंग.
हे प्रिय रसवदना,
रहूँ मैं तेरे संग.
जा रे जा अली बावरे
करो ना मुझको तंग.
मैं कुमुद सुकुमारिनी,
तू आवारा मिलंद.
दूर देश से आया हूँ
पाकर तेरा गंध
यूँ ना दूर हटाइए
तोड़ कर सम्बन्ध .
मैं प्यारी किसी और की
और ही मेरो बंध,
मैं तो सजूंगी हार में,
मुझको प्रिय मुकुंद .
जा भ्रमर घर आपने
भ्रमरी तेरो नन्द.
मैं माया मोहिनी,
मोसो का सम्बन्ध.
मंद मंद मकरंद मधुर,
ले रहा आनंद.
नव , नवीन, नूतन, नवल
प्रिय विभा के संग.

Wednesday 22 February 2012

भारत दुर्दशा


मैं भी गीत सुना सकता हूँ,
तरुणी की तरुणाई का .
मैं भी गीत सुना सकता हूँ ,
यौवन की अंगडाई का .
लेकिन गीत सुनाने आया ,
भारत माँ के क्रंदन का,
लेकिन गीत सुनाने आया,
अबलाओं के रुदन का .

चोर सिपाही बन बैठे
शासन अट्ठाहस करे
लाशो पर भी पैसे लेते
क्या बेचारी लाश करे

भारत माता नंगी होती
पेंटिंग के बाज़ार में
उनको ही संरक्षण मिलता
सेकुलर सरकार में .

मुंबई के हमलावर,
विशिष्ट सुरक्षा पाते हैं .
बैठ छाती पर हमारे,
खीर मलाई खाते हैं .

नए भारत का नया शासक,
अंग्रेजो का बाप हुआ .
गेरुआ पहनना अब भारत में ,
सबसे बड़ा पाप हुआ .

वही सुरक्षा लेकर चलता,
सबसे बड़ा जो अपराधी है .
वही शासन की कुर्सी पर बैठा ,
दंड का जो भागी है .

पहले जो नहीं हुआ,
आज वही सब होता है ,
देख भारत की दुर्दशा ,
‘नीरज’ का दिल रोता है.

कब तक जुल्म सहेगी माता,
बच्चों तुम्हे पुकार रही,
बड़ी आस लगी है तुमसे,
माता तुम्हे निहार रही .

चंद्रशेखर , राजगुरु के
बलिदानों को याद करो ,
अब लड़ने की बारी आई,
अब ना तुम फ़रियाद करो .

छोड़ अहिंसा शस्त्र उठाना,
अब तो मजबूरी हैं,
असुरों का संहार करना,
अब तो बहुत जरूरी है.

अगर क्षत्रिय हो तो ,
सत्य के लिए,
लड़ना स्वीकार करो .
या भीष्म की भांति ,
शिखंडी के हाथों ,
मृत्यु अंगीकार करो .

जागो –जागो मातृ  शक्ति,
तुम्हे जगाने आया हूँ ,
महिषासुर संहार की,
याद दिलाने आया हूँ.

भ्रष्ट, भ्रष्टतर और भ्रष्टतम ,
शासन का व्यवहार हुआ ,
भ्रष्टाचार ही इस व्यवस्था में ,
सबसे बड़ा शिष्टाचार हुआ .

कब तक यूँ ही जुल्म सहोगे ,
जुल्म मिटने के लिए ,
जुल्म का प्रतिकार जरूरी है .
भ्रष्टाचार के खिलाफ ,
लोकपाल का हथियार जरूरी है .

घर से बाहर तक देखो,
हर तरफ यह चर्चा है,
जिसे देखो बाँट रहा ,
लोकपाल का परचा है .
नीरज कुमार'नीर'

Saturday 18 February 2012

झरना


कल कल करता झरना बहता 
कानों में रस घोल रहा है.     

पत्थर पर झुककर वृक्ष देखो 
धीमे से कुछ बोल रहा है.
कल कल करता झरना बहता
कानों में रस घोल रहा है.

गुनगुनी धूप, रेत की चादर
माता के आंचल में छुपकर 
जैसे बच्चा सो रहा है
कल कल करता झरना बहता
कानों में रस घोल रहा है.

कलरव करते पंछी गाते, 
तोता मैना गीत सुनाते   
मेरा भी  मन डोल रहा है
कल कल करता झरना बहता
कानों में रस घोल रहा है.

नीला अम्बर , मीठा पानी , 
प्रकृति कहे सुनो कहानी
जग अपने पट खोल रहा है.

कल कल करता झरना बहता
कानों में रस घोल रहा है.
                                                                .... #नीरज कुमार 'नीर'
#neeraj #jharna #hindi_poem  

प्रेम



प्रेम
प्रेम नगर का वासी हूँ,
प्रेम है मेरा काम .
दोनों हाथ लुटाइये ,
प्रेम बहे अविराम .
प्रेम रस ही पीजिए,
प्रेम का कीजिये गान.
प्रेम धन घटे नहीं,
प्रेम है काम महान .
राम रहीम के फेर में ,
पडा हुआ संसार.
सत कौड़ी दूर की,
प्रेम जगत का सार .
प्रेम वृक्ष लगे नहीं,
प्रेम ना बिके बाजार .
प्रेम धन अमूल्य है,
जाने सो करे विचार.
      “नीरज’’

बारिश


चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी .
तन मन दोनों
भींगे भींगे
दृश्य लागत हृदयहारी 

हर्षित, मुदित
मादक, मनमोहक
श्याम वरण की ओढ़े चादर
छाये बदरा कारी कारी
चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी

बिरह वेदना में तड़पे ‘नीरज’
आयी याद तिहारी.
मेघ वर्ण से केश तुम्हारे
अंखियाँ तेरी कजरारी
चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी

घनीभूत नभ के प्रांगण से
निरखत, गरजत,
बरसत, लथपथ
तड़, तड़, तड़, तड़,
झर, झर , झर, झर .
पिया मिलन के विरह में तडपत
विरहन के नयनन से बरसत
जैसे अश्रु सर,सर, सर, सर .
चंचल, चपल
गरजत, लपकत
सुन्दर, श्याम, मनोहारी
तन मन दोनों
भींगे भींगे
दृश्य लागत हृदयहारी  .
..नीरज कुमार 'नीर'

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