Thursday 29 March 2012

“सम्मान”



काम गीदड़ सी करते हो,
ख्वाब शेरों सी रखते हो.
ये मुमकिन नहीं हैं, यारों,
ये कैसी बात करते हो.

क्षुद्र माया के फेर में
बेच दिया सम्मान,
घुटनों के बल रेंगकर, भी
निकालना चाहते हो काम.

ऊपर उठने कि खातिर
मन से ऊपर उठना होगा
कांटे अगर मिले राहों में,
हंसकर उनको सहना होगा.

तरक्की के लिए
त्याग जरूरी है,
अगर मन में हो विश्वास
नहीं कोई मजबूरी है. 
.......... नीरज कुमार 'नीर'

“प्रयत्न”



नभ के नीले आंगन में,
विचर रहा एक मेघ –खंड ,
आवृत करने रवि पुंज को
कर रहा उद्यम.

सहकर उष्णता का उत्ताप
गगन के विस्तार को रहा माप .
वेध रही तीक्ष्ण किरणें रवि की,
पर आतुर बांधने को रवि का प्रताप.

देखो! प्रमिलित हुआ रवि ,
सफल हुआ मेघ का उद्यम
दिल में लगन हो सच्ची अगर
निष्फल नहीं होता प्रयत्न .
....... नीरज कुमार 'नीर'

Thursday 15 March 2012

“हुस्न”

बला का हुस्न
और बल खा के चलना .
तितलियों सा रंग
ऐ दिल जरा संभलना .
बला का हुस्न
और बल खा के चलना.
मेरी जान ले लेंगी ,
अदाएं कातिलाना .
जुल्फों का यूँ झटकना
नैनों का यूँ मटकना .
बला का हुस्न
और बल खा के चलना.
बच के रहना ऐ दिल, 
हुस्न घाव देता है .
किसी को दर्द देता है ,
किसी कि जान लेता है.
......... नीरज कुमार 'नीर'

Friday 9 March 2012

कृषक




 अमिय, सुधा उपजाने वाला
नित्य हलाहल पीता है,
देख! कृषक भारत का
किस हाल में जीता है.
ओजहीन मुख गाल धसा है,
वक्ष के नीचे 
पेट फंसा है.
वस्त्र फंटे हैं
बालों में तेल नहीं
यह व्यवस्था का दोष है
विधाता का कोई खेल नहीं.
खेतों की  दरारें
कृषक के पांव तक
बढ़ गयी है
उसके पैरों में भी
देखो! बिवाई पड़ गयी है.
चूल्हे में धूम नहीं
खुशियाँ गुम कहीं ,
कभी दुर्भिक्ष, कभी बाढ़
का भय होता है .
अमिय, सुधा उपजाने वाला
नित्य हलाहल पीता है,
देख! कृषक भारत का
किस हाल में जीता है.
पेट भरने वाले
भूखे पेट सोते हैं,
जठरानल में जलते बच्चे
आधी रात को रोते हैं.
सूख गए खेतों में बिचड़े
उगने से पहले
मिट गए उसके भी सपने
पलने से पहले
बहुत मजबूर होकर
किसी हाल में जीता है
हारकर ही वह
कर्ज का विष पीता है.
****
कौन लटका है उधर
पीपल के पेड़ पर
गले में फन्दा डालकर
लो सो गया वह
चिर निद्रा में निडर
पीपल की  छांव में
अब नहीं सताएंगी उसे
आए, कोई भी विपत्ति
चाहे उसके गांव में.
.....नीरज कुमार 'नीर'

Thursday 8 March 2012

बुरा मान गए

वो  सोते रहे उम्र भर फूलों की सेज पर,
हमने बस फूलों की बात की तो बुरा मान गए .
उन्हें तरस नहीं आता मेरे हालात पर ,
लेकिन हम उनकी खुशी में ना हँसे, तो बुरा मान गए .
हम रोते रहे उनकी छोटी सी चोट पर,
पर जो अपने घाव दिखाए तो बुरा मान गए.
चाँद , सितारे, कलियाँ , फूल सब तुम्हारे लिए,
हमने काँटों से दिल लगाया तो बुरा मान गए
फूलों की खुशबू पर सभी का हक है ,
हमने बस फूलों को निहारा तो बुरा मान गए .
चाँद तारों  की कहाँ थी ख्वाहिश हमे,
एक टुटा सा तारा चाहा, तो बुरा मान गए .
ज़माने की सारी खुशियाँ थी उनके वास्ते
हमने अपने जीने की वजह मांगी तो बुरा मान गए.
............ नीरज कुमार नीर 

होली

कौन रंग की चुनरी सजनियां
कौन रंग की चोली
आजा तुझको रंग लगा दूँ
आई देखो होली .

--
लाल रंग की चुनरी सजनवां
हरी  रंग की चोली,
आजा मुझको रंग लगा दे
आई देखो होली.
--
कौन गांव की चुनरी सजनियां
कौन ठांव की चोली ,
आजा तुझको रंग लगा दूँ
आई देखो होली .
--
वृन्दावन की चुनरी सजनवां
गोकुल धाम की चोली
आजा मुझको रंग लगा दे
आई देखो होली.
--
तीन गज की चुनरी तेरी
पांच गज का लंहगा,
कैसे रंग लगाऊं इनमे
कि रंग हुआ बड़ा मंहगा .
--
चार टके  की चाकरी तेरी
तू बाबु सरकारी,
तेरे बस की बात बलमुआ
बस दाल , भात, तरकारी .
लाख टके  का यौवन मेरा
उसपर आई होली
तेरी बातें नीम सी कड़वी
लगती बोली गोली.

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