काम गीदड़ सी करते हो,
ख्वाब शेरों सी रखते हो.
ये मुमकिन नहीं हैं, यारों,
ये कैसी बात करते हो.
क्षुद्र माया के फेर में
बेच दिया सम्मान,
घुटनों के बल रेंगकर, भी
निकालना चाहते हो काम.
ऊपर उठने कि खातिर
मन से ऊपर उठना होगा
कांटे अगर मिले राहों में,
हंसकर उनको सहना होगा.
तरक्की के लिए
त्याग जरूरी है,
अगर मन में हो विश्वास
नहीं कोई मजबूरी है.
.......... नीरज कुमार 'नीर'
.......... नीरज कुमार 'नीर'