Saturday 27 October 2012

वादा करके श्याम न आये


तडपत विरहन  नैन हमारे,
वादा करके श्याम न   आये.

कोई खत  न आई खबरिया,
विरहा  अग्नि जली  वाबरिया।

छलिये को  कभी सुध न आई,
कपोल निज  कजरा पसराई .

आ तो जाते  एक पहर में ,
डाल दीन्ही  विरह भंवर में.

मैं थी कुमति मत गयी मारी
निष्ठुर  से जो प्रीति लगाई.

श्याम छवि सुंदर चित्त  भाए ,
कौन भूल की  दियो  सजाये .

उमक हुमक के  चमकत जाती,
अर्द्ध निश श्याम सुधि  जो पाती.

वर्षा बीती , शिशिर समाये
सब जन आये, श्याम न आये.

तडपत विरहन  नैन हमारे,
वादा करके श्याम न आये.
……………………..नीरज कुमार नीर  ..







Friday 26 October 2012

सफर


कुछ लोग ऐसे होते है,
हवा के साथ चलते हैं.

हम उनमे हैं शामिल,
जो हवा का रूख बदलते है.

कोई रंज नहीं कि
अकेला हूँ राहे सफर में

नई राह बनाने वाले
बिना हमसफ़र चलते है.

मुझे है मालूम कल
मेरे निशाने कदम ढूंढोगे
आज तो हम अकेले सफर चलते हैं.


............नीरज कुमार....

Saturday 6 October 2012

“परिवर्तन”


मेरी प्रस्तुत कविता समाज के वैसे आग्रहों के प्रति जो जड़ता के हद तक रूढ़ीवादी है, और समय के साथ बदलना नहीं चाहती है, लेकिन जिसका बदलना अवश्यम्भावी है.
  
सुन्दर हैं ख्वाब, पलने दीजिए,
नई चली है हवा, बहने दीजिए.
ज़माना बदल रहा है, आप भी बदलिए ,
पुराने ख्यालों को रहने दीजिए.
बहुत पुरानी हो गयी थी दीवारें,
अब जरूरत नहीं है तो ढहने दीजिए
क़ैद में थे परिंदे कभी से,
अब आजाद है तो उड़ने दीजिए.
बहुत चुभें है हाथों में कांटे,
अब खिले हैं फूल तो महकने दीजिए.
.............. “नीरज कुमार”

Wednesday 3 October 2012

जिंदगी

सुबह होते ही शाम हो जाती है,
कहानी शीर्षक में तमाम हो जाती है.

जिंदगी मुठ्ठी में रेत सी फिसलती है,
उमर  रोटी के नाम हो जाती है.

एक टुकड़ा रोशनी की तलाश में,
जवानी अँधेरे में गुमनाम हो जाती है.

क्लबों में पार्टियों का जोर होता है,
झोपड़ियों में रोटी हराम हो जाती है.

कोई खा खा के   मरता है यहाँ,
भूख किसी के मौत का सामान हो जाती है.

लोक शाही के सरकारी बंगले में,
हुकूमत बेफिक्र इत्मिनान हो जाती है.

                  “नीरज कुमार”




Tuesday 2 October 2012

मुझे जीने दे


मुझे जीने दे साथी मेरे वहम के साथ,
जीवन की सच्चाइयां काटती है मुझे,
मैं भागता नहीं सच्चाइयों से,   
जूझता हूँ दिन-रात, सुबह-शाम,
कड़वे, पीड़ादायक, सच्चाइयों से.
कुछ पल मुझे चैन  के जीने दे
मुझे जीने दे साथी मेरे वहम के साथ.
..
मेरे सुरीले, सुखद सपनो में,
घुलती है, कड़वाहट सच्चाइयों की,
भरती है मिठास थोड़ी,.... झूठी सी .
कुछ पल सुकून के जीने दे.
मुझे जीने दे साथी मेरे वहम के साथ.
..
मैं सीमाबद्ध हूँ अपने ही द्वारा,
स्वयं के स्थापित वर्जनाओं के अंदर,
घुटन,सीलन भरी दीवारों के भीतर
सिसकती है जिंदगी आहें भरकर.
कुछ पल मुखर होकर जीने दे.
मूझे जीने दे साथी मेरे वहम के साथ.
...
मैं अवगत हूँ वहम की क्षणिकता से,
मैं भिज्ञ हूँ इसके झूठेपन से,
ज्ञान है मुझे जीवन का: एक क्षणिक झूठ,
कुछ पल मुझे आनंद के जीने दे,
मुझे जीने दे साथी मेरे वहम के साथ.
मुझे जीने दे.
..............'नीरज कुमार'

Monday 1 October 2012

फूलों वाली लड़की


कभी कभी अजनबी सी लगती है,
वो फूलों वाली लड़की.
वैसे तो हर पल मेरे दिल में रहती है,
पर कभी कभी अजनबी सी लगती है,
वो फूलों वाली लड़की.
..
लाल, हरे, बैंगनी, पीले, गुलाबी,
चंपा, जुही गुलाब, गेंदा , चमेली.
ख़ूबसूरत गुलदस्ते जैसी लड़की.
कभी कभी अजनबी सी लगती है
वो फूलों वाली लड़की.
..
खुश होती तो खूब  बातें करती,  
फिर अचानक कहीं गुम हो जाती,
एक अबूझ पहेली जैसी लड़की,
कभी कभी अजनबी सी लगती है
वो फूलों वाली लड़की.
..
अंतर्मन को छूकर जाती ,
तन मन दोनो महकाती,
मनमोहक खुशबू जैसी लड़की,
कभी कभी अजनबी सी लगती है ,
वो फूलों वाली लड़की.
...
हर्षित, उल्लसित, उमंग लिए,
खुशियों का श्रृंगार किये ...
पतझड़ में बहार जैसी लड़की,
कभी कभी अजनबी सी लगती है
वो फूलों वाली लड़की .
.........
जख्म पे मरहम सी ,
सूंदर, कोमल, नरम सी,
उर्जा से उफनाती नदी जैसी लड़की,
कभी कभी अजनबी सी लगती है ,
वो फूलों वाली लड़की,
.........................
“नीरज कुमार”



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