Wednesday 24 July 2013

दर्पण पे धूल


2212   2212    2212    22 
दर्पण जमी हो धूल तो शृंगार कैसे हो 
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो 

महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब 
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो

मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज 
तो राम जाने देश का उद्धार कैसे हो 

सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू 
तुम्ही कहो खेतों में पैदावार कैसे हो 

ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से 
मुर्दा शहर में जीस्त का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर 

(चित्र गूगल से से साभार )

Thursday 18 July 2013

नापाकशाला

पाठ शाला बनी पाक शाला ,
शिक्षक महाराज बन गये .
शिक्षा के मन्दिर थे जो कभी,
अब डूबते जहाज बन गए.

ठगों ने पाठशाला से चुराकर पाठ,
नापाक इरादों से पाक कर  दिया.
नन्हे नन्हे मासूम निर्दोष सपनो को
पलने से पहले खाक कर दिया .

*************
बाईस मासूम , भूखे बच्चे ..
जिनकी प्राथमिकता थी, एक बार पेट भर भोजन .
काल कलवित हो गये, पेट भरने की चाह में .
बाईस मासूम जाने भी ध्यान नहीं खिंच पायी
देश के बुद्धिजीवियों का .
एक आतंकवादी के मरने पर दर्द होता है जिनके पेट में
उनके लिए बाईस मासूम जानो की अहमियत नहीं .
जूँ भी नहीं रेंगी देश के हुक्मरानों के कान पर .
ये बच्चे निर्दोष नहीं थे , दोष था इनका
दोष था इनके माँ –बाप का

इनके सर पर गोल टोपी नहीं थी .

......... नीरज कुमार 'नीर'

Sunday 7 July 2013

दूर के ढोल

अनिश्चितता की बस्ती में
सपनो के महल बनाकर रहना .
यथार्थ को छोड़, भागना परछाईयों के पीछे.
अंक के पहले शून्य लगाने का
कोई मूल्य होता है?
उचित राह की पहचान अगर न हो,
जिंदगी ठहरती नहीं किसी चौराहे पर,
एक राह ले ही लेती है.
जिन्दगी की राह में पीछे छूटे चौराहे पे
वापस जाना भला कब मुमकिन हुआ है ,
जो अच्छा हो सकता था ,
वही बुरा भी हो सकता था .
जो हुआ नहीं उसकी निश्चितता क्या .
विमोह (infatuation) और प्यार के बीच की रेखा बहुत ही महीन है
और कभी कभी अदृश्य सी लगती है .
किसी सम्बन्ध की परिणति अच्छी ही होगी
असंभव है तय कर पाना,
सम्बन्ध के शुरू होने के पहले ही .
दूर के ढोल अक्सर सुहावन होते हैं .
दर्द जब बन जाए जिन्दगी
तो दर्द भी अच्छा लगने लगता है.
लेकिन दर्द ही जिन्दगी नहीं होती.
पुराने जख्मो को ट्रोफियों की तरह
जिन्दगी के शो केस में सजाना ,
सूखे फूलों को सहेज कर रखना
खुशबू की उम्मीद में उम्र भर
सिर्फ दर्द दे सकता है , सुकून नहीं .
यादों की संदूक में जिंदगी को कैद मत रखिये .
जिन्दगी को धुप दिखाना जरूरी है .
… …… नीरज कुमार 'नीर'  
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