Tuesday 31 December 2013

धामिन , करैत और राजा


 (प्रस्तुत कविता आदिवासी बहुल  क्षेत्रों में नक्सली समस्या एवं उसके दुष्चक्र के सम्बन्ध में  है , कैसे एक भोला भाला आदिवासी नक्सली बनने पर मजबूर होता है और बाद में उसकी लालसा कैसे उसको एक गहरे गर्त में धकेल देती है और वह उसमे गहरे फंसता चला जाता है, व्यवस्था कैसे इसमें अपना रोल निभाती है. धामिन एक विष हीन सर्प होता है, यहाँ इसका सन्दर्भ सीधे सादे आदिवासियों से है , करैत एक विषैला सांप होता है , यहाँ  इसका सन्दर्भ नक्सलियों से हैं और राजा तो राजा ही है .. :) )
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जंगल से एक धामिन सांप 
भाग कर आ गया है शहर.
उसके बिल में 
करैतों ने डाला था डेरा.
खा गया था उसके अंडे. 
अब राजा के लोग 
उसके बिल में डाल रहे हैं 
गरम पानी. 
पूछते है करैतों का पता.
उसे बताते हैं करैतों में से एक. 
शहर आकर उसने देखा है चकाचौंध.
सीख लिया छल 
उसके मन में जन्म लेती है 
लालसा .
वह भी पाना चाहता है 
संसाधनों पर अपना हिस्सा
करैतों की तरह 
जो जंगल में रहकर 
शहर में रखते है आलिशान मकान 
बड़ी गाड़ियाँ 
अपने बच्चों के लिए 
इंग्लिश स्कूल और 
अच्छे अस्पताल .
वह जंगल वापस जाता है 
बन जाता है करैत ,
वसूलता है लेवी
घुसता है किसी धामिन के बिल में ..
खाता है उसके अंडे.
उसके सर पर 
सरकार ने रखा है इनाम 
अपने झोले में अब  रखता है
 नक्सली साहित्य . 
#neeraj_kumar_neer 
.. नीरज कुमार नीर

(चित्र गूगल से साभार )

Friday 27 December 2013

काला रंग


अगर तुम पढ़ पाते
मन की भाषा तो
जान पाते
मेरे अंतर के भाव को
तुम समझ पाते
उस बात को
जो मैं कह न सका
तुम देखते हो काला रंग
पर नहीं देख पाते
उसमे छुपे रंगों के इन्द्रधनुष को
जो काला है, उसमे
समाहित है सभी रंग
कभी परदे हटाकर देखो
दिखेगा सत्य
सत्य चमकीला होता है
चुंधियाता हुआ ..

नीरज कुमार ‘नीर’

#neeraj_kumar_neer 

Friday 20 December 2013

बन्दर राजा चले ससुराल : बाल कविता


बन्दर राजा पहन के टाई 
ठुमक ठुमक के चले ससुराल 
एक हाथ में छतरी लेकर 
एक हाथ में लाल रूमाल 

शाम ढली तो बन्दर राजा 
थक कर हो गए निढाल 
चारो तरफ अँधेरा था,
नहीं पहुचे फिर भी ससुराल. 

चलते चलते हो गयी देर 
जंगल में था बब्बर शेर 
सुनकर शेर की बड़ी दहाड़ 
बन्दर को लग गया बुखार  

छतरी छूटी गिरा रूमाल 
दौड़ दौड़ के हुए बेहाल 
कान पकड़ कर कसम उठाई 
अब नहीं जाऊँगा ससुराल ..

.. नीरज कुमार नीर ..
#neeraj_kumar_neer 

Monday 16 December 2013

पथिक अभी विश्राम कहाँ


पथिक अभी विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.

रवि सा जल
ना रुक, अथक चल.
सीधी राह एक धर.
रह  एकनिष्ठ
बढ़ निडर .
अभी सुबह है, 
बाकी है अभी
दुपहर का तपना.
अभी शाम कहाँ,
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.

चलना तेरी मर्यादा,
ना रुक, सीख बहना.
अवरोधों को पार कर
मुश्किलों  को सहना.
आगे बढ़ , बन जल
स्वच्छ, निर्मल.
अभी दूर है सिन्धु
अभी मुकाम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..

पथिक अभी विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ....
#neeraj_kumar_neer 
..... नीरज कुमार नीर

Monday 9 December 2013

वही जी रहा हूँ


तुमने खीची थी जो
सादे पन्ने पर
आड़ी तिरछी रेखाएं
वही मेरी जिंदगी की
तस्वीर  है
वही जी रहा हूँ.

रस भरी के फल
जिसे छोड़ दिया था
तुमने कड़वा कहकर
वही मेरी जिंदगी की
मिठास  है .
वही जी रहा हूँ ..

मंजिल पाने की जल्दी में
जिस राह को छोड़ कर
तुमने लिया था शोर्ट कट
वही मेरी जिंदगी की
राह है .
वही जी रहा हूँ .

तुम हो गये मुझसे दूर
तुम्हे अंक के पहले का शून्य बनना था
मैं तुम्हारा शून्य समेटे हूँ
वही मेरी जिंदगी का
सत्य  है
वही जी रहा हूँ . 
नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 

Wednesday 4 December 2013

प्रीति का बंधन


मेरे ह्रदय के तारों को 
प्रिय तुम स्पंदन मत देना. 

मैं पंछी उन्मुक्त गगन का 
मुक्त हवा में उड़ने वाला. 
उड़ने दो मुझे पंख पसार
प्रीति का बंधन मत देना.
मेरे ह्रदय के तारों को प्रिय तुम स्पंदन मत देना .

हठ करूँ मैं कभी प्रणय की 
तुम प्रेम निवेदन ठुकराना. 
भाव हीन पाषाण ह्रदय से 
तुम प्रेम समर्पण मत देना .
मेरे ह्रदय के तारों को प्रिय तुम स्पंदन मत देना 

प्रेम कोई अनुबंध नहीं 
प्रेम समर्पण जीवन पूर्ण .
रहने दो मुझे जैसा हूँ , 
मुझे वक्र दर्पण मत देना.
मेरे ह्रदय के तारों को प्रिय तुम स्पंदन मत देना. 

जीवन मृत्यु की थाती है 
दीये की घटती बाती है 
मैं देव नहीं देवालय का 
मुझे चन्दन वंदन मत देना 
मेरे ह्रदय के तारों को प्रिय तुम स्पंदन मत देना ..
#neeraj_kumar_neer 
......... नीरज कुमार नीर

चित्र गूगल से साभार 
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