काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के आवरण के भीतर
रास रंग और श्रृंगार में .
आँखों पर चढ़ा लिया
झूठ और ढकोसले का चश्मा.
अपनी कायरता को
प्रगतिशीलता का नाम देकर .
तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं
देता.
तुम सच देखना भी नहीं
चाहते .
क्षणिक स्वार्थों ने
तुम्हे अँधा कर दिया.
पर याद रखना
निरपेक्षता , निष्क्रियता
से बड़ा अपराध है .
हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष
होता है ..
…………. नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
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