Friday 28 March 2014

धुंए का गुबार


मेरी आँखों के सामने 
रूका हुआ है 
धुएं का एक गुबार  
जिस पर उगी है एक इबारत , 
जिसकी जड़ें 
गहरी धंसी हैं 
जमीन के अन्दर.
इसमें लिखा है 
मेरे देश का भविष्य, 
प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .
उसमे उभर आयें हैं ,
कुछ चित्र, 
जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड 
चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले 
युवाओं को 
खा जाता है,
एक पोसा हुआ भेड़िया,
लोकतंत्र को कर लेता है , 
अपनी मुठ्ठी में कैद 
और फिर फूंक मारकर 
उड़ा देता है उसे 
राख की तरह 
मानो यह कभी था ही नहीं. 
बन जाता हैं स्वयं शहंशाह 
टेलीविजन पर बहस करने वाले 
बड़े-बड़े बुद्धिजीवि 
भिड़ा रहे हैं जुगत ,
अपनी सुन्दर बीवियों और 
बेटियों को छुपाने की
धुआं धीरे धीरे नीचे उतर कर 
आ जाता है जमीन पर, 
पत्थर के पटल पर 
मोटे मोटे अक्षरों में दर्ज
हो जाता है इतिहास. 
मैं अपनी आँखों के सामने 
इतिहास बदलते देख रहा हूँ ..

(बात अगर दिल तक पहुचे एवं विचार से सहमत हों तो अपने कमेन्ट अवश्य दें )

नीरज कुमार नीर
#NEERAJ_KUMAR_NEER
चित्र गूगल से साभार 

Monday 24 March 2014

अब हरियल नहीं देगी अंडे ..

'परिकथा' के सितंबर-अक्तूबर 2014 के अंक में प्रकाशित
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इस कविता के पूर्व थोड़ी सी प्रस्तावना मैं आवश्यक समझता हूँ. झारखंड के चाईबासा में सारंडा का जंगल एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ)  का जंगल है , बहुत घना . यहाँ पलाश के वृक्ष से जब पुष्प धरती पर गिरते हैं तो पूरी धरती सुन्दर लाल कालीन सी लगती है . इस सारंडा में लौह अयस्क का बहुत बड़ा भण्डार है , जिसका दोहन येन केन प्राकारेण करने की चेष्टा की जा रही है .. इसी सन्दर्भ में है मेरी यह कविता :

सारंडा के घने जंगलों में
जहाँ सूरज भी आता है
शरमाते हुए,
सखुआ वृक्ष के  घने पत्रों ,
लताओं में छुपता छुपाता. 
जहाँ प्रकृति बिछाती है टेसू, मानो
धरती पर बिछा हो  लाल कालीन
विशिष्ट आगत के स्वागत में.
वहीँ, बरगद के कटोर  में
हरियल ने दिए है
उम्मीद के अंडे .
कटोर  के अन्दर है हलचल
चूजे सीख रहे हैं पंख फडफडाना.
वे भी उड़ेंगे
नापेंगे गगन का विस्तार .
स्वतंत्रता की गुनगुनी धुप में
बेलौस उड़ने का
अपना ही आनंद है ..
लेकिन पड़ती है खलल,
एक दैत्याकार सूअर को
खानी है बरगद की जड़.
वह बनना चाहता है
और मोटा , और बड़ा
वह खोद डालता है बरगद की जड़ को
उलट देता है दरख्त.
जंगल के क़ानून में हरियल
हासिये पर है .
वह करता है प्रतिरोध,
अपने चूजों को
बचाने का असफल प्रयास.
लेकिन रहता है विफल.
उजड़े हुए दरख़्त के साथ ही
समाप्त हो जाती है
हरियल और उसके चूजों की
जीवन गाथा.
अंत होता है एक सभ्यता का.
पलाश के फूलों का रंग
पड़ गया है काला .
रक्त सुख कर
काला हो जाता है .
अब कोई हरियल
सारंडा में नहीं देगी अंडे ..

... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
चित्र गूगल से साभार 

Wednesday 19 March 2014

मध्य मार्ग

परिकथा के सितंबर - अक्तूबर 2014 अंक में प्रकाशित 

आज सुबह से ही ठहरा हुआ है,
कुहरा भरा वक्त. 
न जाने क्यों,
बीते पल को 
याद करता.
डायरी के पलटते पन्ने सा,
कुछ अपूर्ण पंक्तियाँ,
कुछ अधूरे ख्वाब,
गवाक्ष से झांकता पीपल, 
कुछ ज्यादा ही सघन लग रहा है.
नहीं उड़े है विहग कुल
भोजन की तलाश में.
कर रहे वहीँ कलरव, 
मानो देखना चाहते हैं, 
सिद्धार्थ को बुद्ध बनते हुए. 
बुने हुए स्वेटर से 
पकड़कर ऊन का एक छोर
खींच रहा हूँ,
बना रहा हूँ स्वेटर को 
वापस ऊन का गोला. 
बादल उतर आया है, 
घर के दरवाजे पर
मुझे बिठा कर परों पर अपने
ले जाना चाहता है.
एक ऐसी दुनिया में 
जहाँ
प्रकाश ही प्रकाश है 
जहाँ बादल छांव देता है 
अंधियारा नहीं करता.
बगल की दरगाह से 
लोबान की महक का
तेज भभका 
नाक में घुसकर 
वापस ला पटकता है 
कमरे की चाहरदीवारी के भीतर ..
दीवार पर टंगी है 
तुम्हारी एक पुरानी तस्वीर 
जो आज भी लरजती है ख़ुशी से 
हाथों में पकड़े मेरा हाथ .
नहीं यशोधरा, मैं नहीं करूँगा 
निष्क्रमण.
मैं बढूँगा अंतर्यात्रा पर 
पकड़े हुए तुम्हारा हाथ.
मैंने चुना है अरण्य एवं लावण्य के बीच 
एक मध्य मार्ग .

.. नीरज कुमार नीर
Neeraj Kumar Neer
#neeraj_kumar_neer 
चित्र गूगल से साभार 

Monday 17 March 2014

कान्हा खेलें होरी


आ रे कारे बादर 
रँग बरसाने आ रे 
कान्हा  खेलें होरी 
तू बरसाने आ रे

रँग अलग अलग भर ला 
लाल, बैंगनी, पीला
कोई बच ना जाए 
सबको कर दे गीला 
खुशियों की बारिश में 
तू भिंगाने आ रे

इन्द्रधनुष से रँग ला 
त्याग उदासी काली 
उल्लसित जीवन, डाल 
मुख पे उमंग लाली ..
जो उदास है जग में 
उन्हें हँसाने आ रे.

हाथों में पिचकारी
गाल पे रंग गुलाल 
सब मिल खेलें होरी 
अंचल धरा का लाल
जीवन में खुशियाँ भर 
हर्ष जगाने आ रे.

श्याम भींगे सर्वांग 
गोपियाँ राधा संग 
अंग उल्लास निखरे 
रँग, रँग, हर एक अंग .
रँग ना छूटे पाए 
ऐसो रंग लगा रे.

...  #नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 
(बरसाने का दो अर्थ में प्रयोग समझें)
चित्र गूगल से साभार 
#holi #होली  #rang #रंग #pichkari #shyam #gopi 

Sunday 16 March 2014

छन्न पकैया :होली


छन्न पकैया छन्न पकैया , फागुन है सतरंगी 
आजा तुझको रंग लगा दूँ , कर दूँ रंग बिरंगी.

छन्न पकैया छन्न पकैया, मन में फूटे लड्डू, 
फागुन में है  चढ़ी जवानी , क्या छोरा क्या दद्दू.
  
छन्न पकैया छन्न पकैया,  हाथों में पिचकारी.
होली में कितनी  भली लगे , गोरी तेरी गारी  

छन्न पकैया छन्न पकैया, थाली में है पूआ 
तन मन में गोरी आग लगी,  गाल जब तेरा छुआ

छन्न पकैया छन्न पकैया, सबके दुःख मिट जाए,
भूलकर गम विषाद पुराने, मिलकर होली गाये.

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुंदर सुन्दर दोहे  
होली के मौसम में गोरी, रूप तेरा मन मोहे  
………….. Neeraj kumar neer
चित्र गूगल से साभार 
#neeraj_kumar_neer

#holi #होली #छन्न_पकैया #फागुन #रंग #jawani 

Saturday 15 March 2014

नजरिया के तीर : होली गीत

सुनिए पढिये और फाल्गुन का आनंद लीजिये :

नजरिया के तीर सनम धीरे चलाओ
कर कर के इशारे ना हमको बुलाओ.
नजरिया के तीर सनम धीरे चलाओ.

चुनरी के छोर में लपेट के अंगुरी
अधरों  के कोरों को यूँ ना चबाओ.
नजरिया के तीर सनम धीरे चलाओ.

पहनी है पायल तो हौले से चलना
कर के छमाछम मेरा जी ना जराओ.
नजरिया के तीर सनम धीरे चलाओ.

होली के मौसम में गर्म भई  हावा
अब गिरा के दुपट्टा  ना आग लगाओ.
नजरिया के तीर सनम धीरे चलाओ ..
(#होली की शुभकामनाएं)
.. #नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 

#holi #होली #payal #love #holi_geet 

Thursday 6 March 2014

मोहक वसंत


बीता कटु शीत शिशिर  
मोहक  वसंत आया 

पुष्प खिले वृन्तो पर 
मुस्काये हर डाली. 
मादक महक चहुँ दिशा 
भरमाये मन आली. 
तरुण हुई धूप खिली 
शीत का अंत आया .
बीता कटु शीत शिशिर  
मोहक  वसंत आया .

प्रिया की सांसों सी
मद भरा ऊषा अनिल.   
अंग अंग उमंग रस 
जग लगे मधुर स्वप्निल. 
कुहूक  बोले कोयल
कवि नवल छंद गाया.
बीता कटु शीत शिशिर  
मोहक  वसंत आया .. 


आम्र वृक्ष स्वर्ण मौर 
महुआ  रस टपकाया. 
देखूं दृश्य अनिमेष 
किसने चित्र बनाया. 
अभिसार पूरित  ह्रदय 
जग प्रेम दिगंत छाया.
बीता कटु शीत शिशिर  
मोहक  वसंत आया .

त्याग शर्म अवगुंठन 
दे रही प्रणय  निमंत्रण. 
वृक्ष लता लिपटाया  
नगर नगर हर उपवन.
हर कोने   में वसुधा 
के हर्ष अनंत छाया. 
बीता कटु शीत शिशिर  
मोहक  वसंत आया .

..... नीरज कुमार नीर  
चित्र गूगल से साभार 
#basant #बसंत 
#neeraj_kumar_neer 
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