Saturday 28 November 2015

धर्मनिरपेक्षता : एक लघु कथा

धर्म अफीम की तरह है, धर्म मानवता के विकास में बाधक है, धर्म शोषण का सबसे बड़ा हथियार है । सिंह साहब धाराप्रवाह सभा को संबोधित कर रहे थे। सामने बीस पच्चीस लेखकों, कवियों की जमात बैठी थी, जो उनके हर कहे की सहमति में अपना सर हिला रही थी। सिंह साहब जाने माने कवि थे एवं कई पुरस्कारों से नवाजे  जा चुके थे, अतः सभी के लिए स्पृह्य थे। सब उनकी नजर में आना चाहते थे। सिंह साहब पूरे जोशो खरोश के साथ अपना भाषण  जारी रखे हुए थे, जिसमे वे बता रहे थे कि हिन्दू धर्म कैसे बुराइयों की खान है। हमे कैसे धर्म से जुड़े सभी स्तंभों एवं मानकों का विरोध करना चाहिए ....... पूरे हौल में में उनकी आवाज गूंज रही थी, सभी सम्मान भाव से उन्हें सुन रहे थे। अचानक बोलते बोलते सिंह साहब रुक गए। सभा में उपस्थित सभी लोग सकते में आ गए कि आखिर हुआ क्या .... सिंह साहब चुप क्यों हो गए, कहीं उनकी तबीयत तो खराब नहीं हो गयी ? थोड़ी देर बाद सिंह साहब ने स्वयं ही चुप्पी थोड़ी और कहा “ अभी अजान हो रहा है , अजान के वक्त हम लोग शांति से बैठेंगे और अजान खतम हो जाने के बाद मैं अपनी बात आगे कहूँगा “ बगल के मस्जिद से अजान की आवाज सभा स्थल पर गूंज रही थी अल्लाह हू अकबर अल्लाह ........ सभा में उपस्थित सभी लोग शांत भाव से बैठे रहे ।
..... नीरज कुमार नीर..........
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Saturday 21 November 2015

लोकतन्त्र के कुछ दोहे

पढ़िये, लोकतन्त्र के कुछ दोहे :
अच्छा लगे तो लोकतन्त्र की जय बोलिए 

लोकतन्त्र में देखिये , नित्य नवीन नजीर। 
पढे लिखे सो अर्दली, अनपढ़ बने वजीर॥ 1 
... 
लोकतन्त्र की दुर्दशा, …. भारत माता रोय । 
अयोध्या में देखिए, रावण पूजित होय ॥  2 
...
लोकतंत्र को है लगा, कैसा कहिए रोग । 
झूठ, कुटिल, पाखंड को, सुंदर खूब सुयोग॥ 3    
......
भीड़, भेड़ अंतर नहीं, कुछ भी कहा न जाय। 
लोकतन्त्र में बागुला,   हंस सम मान पाय ॥ 4 
 ............ 
स्वयं भए कुपात्र जो, औरन तिलक लगाय ।
नैतिकता के सूरमा, हेरत नैन  झुकाय ॥ 5 
........ 
कर जोड़ के खड़ा रहे, लाज शर्म को खोय। 
बात करे ईमान की, डूब मरे सब कोय॥ 6 
----------------- नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 

Saturday 14 November 2015

सुशासन बाबू

 कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू  
कल के दुःशासन से गले मिलैं सुशासन बाबू

कैसी विडम्बना है  
राजनीति के व्यापार में
जिनके विरुद्ध खड़े हुए  
भेजा कारागार में
अब उन्हीं की आरती
उतारैं सुशासन बाबू  
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

सत और असत में अब
भेद कोई बचा नहीं है
उनके अपराधों  की  
कोई अब चर्चा नहीं है  
तम सम आचरण को
पावन कहैं सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

सज्जन के मन खौफजदा
अपराधी आबाद है
जय कहिए कि बिहार में
आया समाजवाद है
लालटेन की रौशनी
जंगल फिरैं सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

गली गली भुजंग दिखै
और फिरैं गड़ावत  दाँत  
मानसरोवर में बागुला
नाला हंस की पांत
गाल बजावैं खुद को
चंदन कहैं  सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू
............ नीरज कुमार नीर 

Sunday 8 November 2015

धुआँ और बादल

एक दिन मैं बन गया धुआँ
उठने लगा ऊपर हवा में
ऊपर और ऊपर
बादलों के पास
और बादलों से कहा
मैं भी बादल हूँ
बादल हंसने लगा
कहा
मुझमें पानी है
मैं देता हूँ जीवन
तुम खोखले हो
नफरत की आग से उठे हुए
तुम फैलाओगे
अंधेरा
केवल अंधेरा
मैने आश्चर्य से भरकर
अपने प्यारे देश की ओर देखा
जहां रखी जा रही थी
विकास की बुनियाद
फैलाकर
नफरत की आग
दलितों को सवर्णों के खिलाफ
अगड़ों को पिछड़ों के खिलाफ
मुसलमानो को हिन्दुओ के खिलाफ
क्या उनके विश्वास का सपना
हो जाएगा धुआं?
......... नीरज कुमार नीर
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#politics #nafrat #dalit #musalman 

Sunday 1 November 2015

चमड़े की नाव

पकड़कर उसकी पूंछ
करते थे
जिनके पुरखे
पार
कर्म फल की वैतरणी
उसी के चमड़े की
बना के नाव
पार करना चाहते हैं उनके बच्चे
चुनाव की वैतरणी
ताकि पहुँच सकें
सत्ता, शक्ति और सुख के
पंचवर्षीय लोक में ।
... नीरज कुमार नीर

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