Saturday 14 November 2015

सुशासन बाबू

 कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू  
कल के दुःशासन से गले मिलैं सुशासन बाबू

कैसी विडम्बना है  
राजनीति के व्यापार में
जिनके विरुद्ध खड़े हुए  
भेजा कारागार में
अब उन्हीं की आरती
उतारैं सुशासन बाबू  
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

सत और असत में अब
भेद कोई बचा नहीं है
उनके अपराधों  की  
कोई अब चर्चा नहीं है  
तम सम आचरण को
पावन कहैं सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

सज्जन के मन खौफजदा
अपराधी आबाद है
जय कहिए कि बिहार में
आया समाजवाद है
लालटेन की रौशनी
जंगल फिरैं सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

गली गली भुजंग दिखै
और फिरैं गड़ावत  दाँत  
मानसरोवर में बागुला
नाला हंस की पांत
गाल बजावैं खुद को
चंदन कहैं  सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू
............ नीरज कुमार नीर 

6 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 016/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
    इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...


    ReplyDelete
  2. खूबसूरत भाव,बेहतरीन प्रस्तुति.
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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