Sunday 27 December 2015

मैं परिंदा हूँ मेरा ईमान न पूछो : गजल

मैं परिंदा हूँ ..... ... मिरा ईमान न पूछो
क्या हूँ, हिन्दू या कि मुस्सलमान न पूछो।

चर्च, मंदर, मस्जिदें ....सब एक बराबर
रहता किसमे है मिरा भगवान न पूछो.

मजहबी उन्माद में जो मर गया वो था
एक जिंदा आदमी , पहचान न पूछो ।

पीठ में घोपा हुआ है नफरती खंजर
रोता क्यों है अपना हिंदुस्तान न पूछो ।

आलमे बेचैनियाँ हर सिम्त है फैली
हर गली हरसू क्यों है वीरान न पूछो ।

खूब काटी है फसल अहले सियासत ने
खाद बन, किसने गँवाईं जान न पूछो ।

भाई मारा जाता है जब, भाई के हाथों
होती कितनी ये जमीं हैरान न पूछो ।
...... नीरज कुमार नीर .............
#neeraj_kumar_neer
#gazal  #hindu #hindustan #bhagwan 

Saturday 19 December 2015

क्या आपका बच्चा पढ़ता नहीं है ...... ?????

क्या आपका बच्चा पढ़ता नहीं है ...... ?????
निराश न हों ...
....
......
....
उसे बलात्कारी बनाइये ,
खूंखार बलात्कारी ...........
स्त्री के योनि में सरिया घुसा कर
फाड़ देने वाला बलात्कारी ..............
स्तनों को काट लेने वाला बलात्कारी ........
बलात्कार की घटना के बाद..............
हजारों की संख्या में दीये और कैंडल जले ,
ऐसा बलात्कारी ,
वीभत्स बलात्कार ......
सुनने वाले की रूह काँप जाये ,
ऐसा बलात्कारी ......
फिर तीन वर्षों के सुधार कार्यक्रम के बाद
उसे सरकार देगी एक लाख रुपए और
दर्जी की दुकान .....
सरकार , न्याय व्यवस्था, सामाजिक संस्थाएं सब उसी के लिए तो है .....
तो निराश न हों
.... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 

Saturday 12 December 2015

दिसंबर की धूप

दिसंबर की ठंढ
समा जाती है नसों के भीतर...
और बहती है लहू के साथ साथ......
पूरे शरीर को भर लेती है
अपने आगोश में .....
जम जाते हैं वक्त के साये भी
बेहिस हो जाती है हर शय
हरसू गूँजती है
ठंडी हवा की साँय साँय ....
ऐसे में तुम याद आती हो
बारहा .......
आ जाओ न तुम
लेकर अपने आगोश में
अधरों से छूकर
भर दो  उष्णीयता से
रोम रोम खिल जाए
पीले सरसो के फूल की तरह
आँखों में उतर आई ओस की बूंदे
हो जाए उड़नछू
सच , फिर कहीं रह न जाये बाकी
नामो निशां ढंढ की
आ जाओ न तुम
दिसंबर की धूप की तरह
............ neeraj kumar neer
#neeraj_kumar_neer 

Tuesday 8 December 2015

डाकू बैठे गली मुहल्ले

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ ।

गाछ, लता, हरियाये , पात
महुआ, सखुआ, नीम, पलाश
ये है मेरी धड़कनों में
तुम्हें सुनाना चाहता हूँ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ

ताल-तलैया घाट गहरे
किन्तु खुशियों पर पहरे
डाकू बैठे गली मुहल्ले
तुम्हें बताना चाहता हूँ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ

लूट रहे हैं मुझको सब
मौका मिलता जिनको जब
झारखंड हूँ मैं अपने
घाव दिखाना चाहता हूँ ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ।

दर्द जो मैं भोगता हूँ
भाव वही मैं रोपता हूँ
हृदय में जो भरा हुआ
तुम्हें दिखाना चाहता हूँ

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ
.........नीरज कुमार नीर /
#jharkhand #jungle #geet #neeraj
#neeraj_kumar_neer 

Wednesday 2 December 2015

मुर्दों में असहिष्णुता नहीं होती

मैं जिंदगी बांटता  हूँ
पर इसके तलबगार
मुर्दे नहीं हो सकते
लहलहाते हरियाये
हँसते खिलखिलाते पौधे
जिनमे फल की उम्मीद है
जल उन्हीं में डालूँगा
सूख चुके /सड़ चुके  पौधों में
जल व्यर्थ ही जाएगा
मैं ढूँढता हू
आनंद और ऊर्जा की खोज में रत
स्वाभिमानी
स्थायी जड़ता से ऊबे
परिवर्तन की चाह वाले
युवा सिपाही।
हजार वर्ष की परतंत्रता ने
जिनके लहू  को
कर दिया है नीला
खराब हो चुंका है जिनका जीन
उन्हें जाना होगा
पीछे नेपथ्य में
जहां अकूत शांति है
उनकी जगह वहीं हैं
मुर्दों में असहिष्णुता नहीं होती
धर्म, राष्ट्र, न्याय से हीन
ये वैसे प्रेत हैं
जो कभी कभी
धर लेते हैं कमजोर मस्तिष्क युवाओं को
............ नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...