Saturday 25 February 2012

आवारा मिलंद

मंद-मंद मकरंद मधुर,
ले रहा आनंद.
नव , नवीन, नूतन, नवल,
प्रिय विभा के संग.
पुष्प पुट में बैठ अलि,
छेड़ रहा तरंग.
हे प्रिय रसवदना,
रहूँ मैं तेरे संग.
जा रे जा अली बावरे
करो ना मुझको तंग.
मैं कुमुद सुकुमारिनी,
तू आवारा मिलंद.
दूर देश से आया हूँ
पाकर तेरा गंध
यूँ ना दूर हटाइए
तोड़ कर सम्बन्ध .
मैं प्यारी किसी और की
और ही मेरो बंध,
मैं तो सजूंगी हार में,
मुझको प्रिय मुकुंद .
जा भ्रमर घर आपने
भ्रमरी तेरो नन्द.
मैं माया मोहिनी,
मोसो का सम्बन्ध.
मंद मंद मकरंद मधुर,
ले रहा आनंद.
नव , नवीन, नूतन, नवल
प्रिय विभा के संग.

4 comments:

  1. बहुत ही सुंदर कविता नीरज जी। आपकी कविताओं से मेरी हिंदी भी सुधर रही है। मौका मिले तो एक नजर मेरे ब्लॉग पर भी दीजिये, आभारी रहूँगा। abhilekh-dwivedi.blogspot.com // abhilekh-abhi-lekh.blogspot.com

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  2. बहुत ही सुन्दर और प्यारी रचना....
    :-)

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  3. वाह ! सुन्दर शब्द

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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