Friday, 5 April 2013

सपने और रोटियां


सपने  अक्सर झूठे होते हैं.
मैने झूठ बेचकर सच ख़रीदा है.
सच अपने बूढ़े माँ बाप के लिए,
सच अपने बीवी बच्चों के लिए,
मैने सपने बेचकर खरीदी हैं रोटियां.
सपने सहेजे नहीं जा सकते,
मैं सहेज कर रखता हूँ रोटियाँ,
पेट भरा हो तो नींद गहरी आती है.
गहरी नींद में सपने नहीं आते
मैं नींद में गहरे सोता हूँ.
क्योंकि मैने सपने बेचकर खरीदी हैं रोटियां.
.............  नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer



12 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति. बहुत अच्छा लिखा है आपने.

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  2. बेहतरीन बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना ,,,नीरज जी,,,

    Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग

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  3. जीवन का सबसे बड़ा सच ही हैं ये रोटियां...गहन भाव...

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  4. प्रभावशाली कलम ...
    बधाई भाई !

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  5. बहुत प्रभावी ... आज यही हो रहा है ... सपने बेच के भी कई बार एक समय की रोटी नहीं मिलती ...

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  6. sach kaha aapne. aaj bahut se log hain jinhe rotiyon ke liye sapne bechane hi padte hain.

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  7. भावुक रचना...शायद सभी के मन के भावों को आपने शब्द दिये हैं

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  8. आपकी यह रचना दिनांक 07.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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