Friday, 20 December 2013

बन्दर राजा चले ससुराल : बाल कविता


बन्दर राजा पहन के टाई 
ठुमक ठुमक के चले ससुराल 
एक हाथ में छतरी लेकर 
एक हाथ में लाल रूमाल 

शाम ढली तो बन्दर राजा 
थक कर हो गए निढाल 
चारो तरफ अँधेरा था,
नहीं पहुचे फिर भी ससुराल. 

चलते चलते हो गयी देर 
जंगल में था बब्बर शेर 
सुनकर शेर की बड़ी दहाड़ 
बन्दर को लग गया बुखार  

छतरी छूटी गिरा रूमाल 
दौड़ दौड़ के हुए बेहाल 
कान पकड़ कर कसम उठाई 
अब नहीं जाऊँगा ससुराल ..

.. नीरज कुमार नीर ..
#neeraj_kumar_neer 

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर बाल कविता.
    नई पोस्ट : मृत्यु के बाद ?

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  2. मस्त ... मज़ा आया बंदर राजा को पढ़ने के बाद ...
    सुन्दर रचना ...

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. बहुत सुंदर बाल कविता.... अच्छी प्रस्तुति.

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  5. हा हा हा .... सच्ची बड़ी हंसोड़ कविता

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