Thursday, 2 January 2014

बदल गया कैलेण्डर

बाहर सब उजला उजला 
तम कितना पर अन्दर .
आया पुनः नव वर्ष,
बदल गया कैलेण्डर.

देह वही, सांस वही,
भोग वही, चाह वही,
तमस में द्वार नहीं,
कफस से राह नहीं.
आ गया जनवरी
कल था दिसंबर ..

भवन ऊँचे छूते आकाश
उस पार मैला प्रकाश ,
प्राचीर ऊँची , गिरे विचार.
लाचार ठंढे बेबस 
उच्छ्वास ..
अन्दर अन्दर मथता है
विचारों का बवंडर ..

राजनीति में नीति का
नित्य-नित्य  उल्लंघन
भाग्य विधाता बन कर बैठे 
विचारों की थाली के बैंगन ..
जो कुछ बाहर दिखता है
है वही नहीं अन्दर ..

नव वर्ष आया ,
बदल गया कैलेण्डर.
#neeraj_kumar_neer 
... नीरज कुमार नीर 
    (बात अगर दिल तक पहुचे तो टिप्पणी के माध्यम से समर्थन अवश्य दें )

12 comments:

  1. बस कैलंडर ही न बदले... बदले परिवेश भी... सार्थक परिवर्तन की ओर!

    अच्छी रचना!
    शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  2. बहुत सही ... यही भाव मेरे मन में भी आते हैं आखिर क्या बदलता है। .. कुछ भी तो नहीं

    ReplyDelete
  3. बढ़िया है भाई जी-
    आभार

    ReplyDelete
  4. bahut sahi kaha aapne ...sundar rachna

    ReplyDelete
  5. केलेंडर ऐसे ही बदलते रहेंगे ... जो हों अहै वो होता रहेगा ... बस २०१३ यादों में चला जायगा ... वन वर्ष की मंगल कामनाएं ...

    ReplyDelete
  6. बहुत उम्दा सुंदर प्रस्तुति...!
    नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाए...!
    RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.

    ReplyDelete
  7. सुंदर !
    नववर्ष शुभ हो मंगलमय हो !

    ReplyDelete
  8. उम्दा..... नववर्ष की मंगल कामनाएं

    ReplyDelete
  9. अन्दर अन्दर मथता है
    विचारों का बवंडर ..ye kabhi nahi badalta hai ......

    ReplyDelete
  10. शुक्रिया ब्लॉग चिठ्ठा ..

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  12. सच में जीवन वही रह जाता है. नए साल की शुभकामनायें.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.