Saturday, 14 March 2015

पार उतारो जहां प्रकाश है: एक प्रार्थना


मेरे मन के गगन पटल पर
रहो सदा ध्रुव तारा बनकर

लक्ष्य तुम्ही, तुम्ही दिग्दर्शक
अंध पथिक के पथ प्रदर्शक 
पार उतारो जहां प्रकाश है 
तम सागर के नाविक बनकर।

बुला रहा हूँ तुझको कबसे 
प्यास बुझाओ मेरे मन के 
द्वार खुला है हृदय के आओ 
मृदु हवा का झोंका बनकर .. 

मेरे मन के गगन पटल पर
रहो सदा ध्रुव तारा बनकर

नीरज कुमार नीर 

1 comment:

  1. बहुत उम्दा....दीपावली की शुभकामनायें ...

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