Tuesday, 26 May 2015

हिम सागर

जब मैं जन्मा तो था एक झरना
कल कल करता उछल कूद मचाता हुआ
अशांत पर निश्चिन्त ।
फिर हुआ एक चंचल, अधीर नदी
अनवरत आगे बढ़ने की प्रवृति, उतावलापन
मुझे नियंत्रित करती रही मजबूत धाराएँ ।
और अब सागर बनने की राह पर हूँ
ऊपर ऊपर धाराएँ अब भी
नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं
पर भीतर भीतर शांत
बनना चाहता हूँ
धीरे धीरे मैं  हिम सागर
बिलकुल ठोस
जिसकी प्रकृति एक सी होगी
अंदर बाहर
सघन शांत ।
नीरज कुमार नीर ...
(c) #neeraj_kumar_neer

6 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति कविवर नीरज जी ।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जयंती - प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. बेहद खूबसूरत शब्‍दों से सजी हुई रचना।

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, और क्या खूब भाव... वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

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  5. जीवन के चक्र को उतार दिया इन शब्दों में नीरज जी ...

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.