Thursday, 17 March 2016

सुगना उदास है

यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है
पर सुगना  बहुत उदास है

पत्नी के कानों में और
गेंहू के पौधों पर बाली नहीं है
होठों पर पपड़ी पड़ी है ....
लाली नहीं है
रूठती तो है
पर जिद करे .....  ऐसी घरवाली नहीं है
पर सुगना का भी तो फर्ज़ है
लेकिन क्या करे, उस पर तो कर्ज है
उसे अपनी चिंता नहीं है
पर जानवर को क्या खिलाएगा
सूख चुंकी  हर तरफ घास है
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है .......... पर सुगना ...........

सुगना बुढ़ौती का बेटा है
घर का अकेला ज़िम्मेवार है
अम्मा को सुझाई नहीं देता है
बाबा बीमार है
बेटा पढ़ने मे तेज है
पर क्या करे
सरकारी स्कूल का मास्टर फरार है
मास्टर जब आता है
बेटा खिचड़ी खाता है
और एक एकम एक गाता है
वह एक से दो नहीं पहुंचा है
और न पहुँचने की आस है  .......
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है  .......... पर सुगना.....

वह परेशान है
मन भी खिन्न है
पर वह बेवजह दंगा नहीं करता है
अपनी भारत माँ को सरेआम नंगा नहीं करता है
वह बेरोजगार है
पर गद्दार नहीं है
वह भूखा रहकर भी वन्देमातरम गाता है
वह जानता है
उसकी स्वतन्त्रता तभी तक है
जब तक राष्ट्र जिंदा है
वह पढे लिखों की नादानियों पर शर्मिंदा है
वह एक जिंदा आदमी है और
जिंदा यह  एहसास है
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है   .......... पर सुगना......
..... नीरज कुमार नीर
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3 comments:

  1. एक आम आदमी और एक so called पढ़े लिखे आदमी के मध्य का सटीक अंतर दिखाती है यह कविता । JNU जैसी कई संस्थाओं के तथाकथित scholarly छवि को आईना दिखाती है यह कविता ।

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  2. ऐसे सुगना इस समाज में न जाने कितने हैं ! महलों की रौशनी इतनी हो गयी कि अँधेरी झोपडी का अँधियारा अब किसी को नजर नही आता !! सार्थक शब्द नीर साब

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  3. यू तो वजह नहीं है ख़ास ....पर आप की रचना बहुत खास है बहुत सुंदर .

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