"जंगल में पागल हाथी और ढोल" के बारे में क्या कहते हैं आज के साहित्यकार :
#jungle_ mein_ pagal_ hathi_ aur_dhol
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हरेप्रकाश उपाध्याय ::::
बहुत कम कवि हैं जो जीवन की आपाधापी से बचकर अपने अलावा दूसरे लोगों के जीवन के बारें कुछ सोच रहे हैं या उनके जीवन से जुड़कर उनके भीतर कोई संवेदना पैदा हो रही है। बाज़ार ने संवेदना और सामाजिकता का स्पेस लील लिया है, जिसके शिकार युवा कवि भी हैं। वैसे में नीरज नीर जैसे कवि एक संभावना की तरह दाखिल होते हैं। नीरज झारखंड के आदिवासी बहुल आबादी क्षेत्र से आते हैं और उनकी कविता में उनका देशज यथार्थ प्रमुखता के साथ उभरता हुआ दिखाई देता है। वरना आजकल के कवियों की कविता पढ़कर आप जान ही नहीं सकते कि वे ज़मीन पर रहते हैं या पहाड़ पर रहते हैं या आसमान में रहते हैं। नीरज कविता की किसान संस्कृति के कवि हैं। वे अपनी ज़मीन पर अपनी कविता को उपजाते हैं। उन्हें बहुत बधाइयाँ !
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नीलोत्पल रमेश :
समसामयिक परिवेश को अभिव्यक्त करती नीरज नीर की कविताएं झारखंडी समाज को वृहत्तर संदर्भ में व्यक्त करती हैं | इनकी कविताओं में दृश्य बिंब का प्रयोग सार्थक ढंग से हुआ है
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"जंगल में पागल हाथी और ढोल" यह संकलन मात्र 120/- रु. में उपलब्ध है।
डाक ख़र्च फ्री। रज़िस्टर्ड डाक से किताब भेजी जाएगी।
मूल्य आप इस नंबर पर पेटीएम कर सकते हैं- 08756219902
या इस खाते में जमा करा सकते हैं-
accont details-
Rashmi prakashan pvt. ltd.
a/c no- 37168333479
state bank of india
IFSC Code- SBIN0016730
आपको पुस्तक भेज दी जाएगी।
मूल्य जमा कराने के पश्चात जमा कराने का प्रमाण अौर अपना पूरा पोस्टल एड्रेस 08756219902 पर वाट्सअप कर दें
#jungle_ mein_ pagal_ hathi_ aur_dhol
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हरेप्रकाश उपाध्याय ::::
बहुत कम कवि हैं जो जीवन की आपाधापी से बचकर अपने अलावा दूसरे लोगों के जीवन के बारें कुछ सोच रहे हैं या उनके जीवन से जुड़कर उनके भीतर कोई संवेदना पैदा हो रही है। बाज़ार ने संवेदना और सामाजिकता का स्पेस लील लिया है, जिसके शिकार युवा कवि भी हैं। वैसे में नीरज नीर जैसे कवि एक संभावना की तरह दाखिल होते हैं। नीरज झारखंड के आदिवासी बहुल आबादी क्षेत्र से आते हैं और उनकी कविता में उनका देशज यथार्थ प्रमुखता के साथ उभरता हुआ दिखाई देता है। वरना आजकल के कवियों की कविता पढ़कर आप जान ही नहीं सकते कि वे ज़मीन पर रहते हैं या पहाड़ पर रहते हैं या आसमान में रहते हैं। नीरज कविता की किसान संस्कृति के कवि हैं। वे अपनी ज़मीन पर अपनी कविता को उपजाते हैं। उन्हें बहुत बधाइयाँ !
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नीलोत्पल रमेश :
समसामयिक परिवेश को अभिव्यक्त करती नीरज नीर की कविताएं झारखंडी समाज को वृहत्तर संदर्भ में व्यक्त करती हैं | इनकी कविताओं में दृश्य बिंब का प्रयोग सार्थक ढंग से हुआ है
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"जंगल में पागल हाथी और ढोल" यह संकलन मात्र 120/- रु. में उपलब्ध है।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको जन्मदिन-सह नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं!