Tuesday, 17 July 2012

"कर्म पथ"


प्राची के प्रांगण में,
शुभ्र उषा अरुणाई है.
सुन्दर, सुभग, मनोरम, मन्जुल
जैसे स्रष्टा की परछाई है.
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पद्म ने पट खोले,
भ्रमर ने गुंजन किया,
उषा ने बांहे खोलकर,
रवि का आलिंगन किया.
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चल उठ उड़ चल मन
कर्म पथ पर
उत्साह से भर कर
जीवन रथ पर.
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तू कर्मवीर है
परिव्राजन तेरा धर्म नहीं,
बढते जाना जीवन पथ पर
रुक जाना जीवन मर्म नहीं.
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पर्वत, सरिता, पथ कंटीले
आंधियों से ना डर,
कर्म है कर्तव्य तुम्हारा
शेष का चिंतन ना कर.
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जो अपकृष्ट हैं, यद्यपि
वे तो उपहास करेंगे
ना देख उनकी ओर
तू परिमल सा बहता चल.
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चल उठ उड़ चल मन
कर्म पथ पर
उत्साह से भर कर
जीवन रथ पर.
...................... नीरज कुमार नीर”............

3 comments:

  1. बेहतरीन कविता नीरज जी ।बहुत खूब।

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  2. तुम गीत वहीं फिर गाते हो जो मन में आन समाता है

    उषा कि प्याली में रचे बसे किरणों का दीप जलाता है
    नीरज जी आप को देख कर गोपाल दास नीरज याद आ जाते है।

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    1. क्या कहने आराधना जी ... किन शब्दों में आपका आभार व्यक्त करूँ ..... आपके उत्साहवर्धन से मान बढ़ा है ..... शुक्रिया शुक्रिया .....

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