Sunday, 5 May 2013

ठूंठ का जंगल


ठूंठ के जंगल में

फूटता है जब कोई कपोल,

परितप्त ह्रदय में,

जगती है उम्मीद,

एक कोना छांव की .

.... नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer

9 comments:

  1. यही शुरुआत है जीवन की ....

    ReplyDelete
  2. उम्मीद है कोपलें ऐसे ही फूटती रहे.

    ReplyDelete
  3. इस उम्मीद को जगाये रखना भी जरूरी है ... फूल को साहस भी तो जरूरी है ...

    ReplyDelete
  4. उम्मीद जगी है तो मिलेगी ही एक कोना छाँव...

    ReplyDelete
  5. bahut kam shabdon mein bahut badi baat keh daali :)

    ReplyDelete
  6. उम्मीद ही तो गिन्दगी है .....अच्छी रचना.

    ReplyDelete
  7. Crisp and crystal clear... good one

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.