Monday, 24 June 2013

हिमालय तुम क्यों रोये

हे भागीरथी !
हमें पुरखों से भान था तुम्हारी प्रचंडता का.
परन्तु विश्वास था,
भागीरथ को प्राप्त वर पर,
चंद्रशेखर की सुशोभित जटाओं पर

मानव कल्याण के विहित मार्ग से
जनान्तक क्यों हुई /
भागीरथ प्रयास विफल हुआ /
गंगाधर की जटाओं में तुम ना समाओ/
यह तो परे है प्रज्ञा की सीमा से/
असीम दिगंत की इच्छा मात्र से ही तो तुम भी हो .
******
हे केदार नाथ !
आप अपने दिए वर से विचलित हो,
यह तो परे है, बुद्धि की सीमा से/
यह कार्य कारणवाद भी तो नहीं/
तर्क और विवेक की सीमा है/
सम्यकता की भी सीमा है.
हृदय विह्वल है,
मेरी विह्वलता यद्यपि अर्थहीन है.
****
हे हिमालय!
तुम क्यों रोये ?
तुम रक्षक थे भारती के ,
उनके पुत्रों की रक्षा भी दायित्व था तुम्हारा .
अपने अधिपति के भक्तों को मृत्यु मुख में डाला .
कई होंगे तुम्हारे अपराधी,
तुम्हें नंगा करने वाले,
प्रदूषित करने वाले,
पर इसकी इतनी वृहद सजा
बगैर, भेद के.
हिमालय सा धैर्य
हिमालय सी सहिष्णुता
अर्थ खो चुकी है .

...... नीरज कुमार ‘नीर’
    

14 comments:

  1. वाह बहुत ही अच्छा लगा, धन्यवाद.

    ReplyDelete
  2. कहते हैं "जैसे करनी वैसे भरनी " कर्णधारों का कर्मफल जनता भोग रही है
    latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

    ReplyDelete
  3. बिलकुल सही सवाल पूछा है आपने. सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  4. द्रवित करते प्रश्न...अनुपस्थित उत्तर

    ReplyDelete
  5. आपकी पोस्ट को कल के ब्लॉग बुलेटिन श्रद्धांजलि ....ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।

    ReplyDelete
  6. उत्क्रुस्त , भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति .

    ReplyDelete
  7. सामयिक और सटीक प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    @मानवता अब तार-तार है

    ReplyDelete
  8. Patience has limit. Anger of a patient person can be devastating.

    ReplyDelete
  9. जब अती आ जाती है तो धरी खत्म हो जाता है ...
    शायद ये एक चेतावनी ही है ...

    ReplyDelete
  10. हिमालय खुद अपना ही अर्थ खो चुका है - एक निरा पर्वत (station of hill stations) जहाँ तीर्थयात्री नहीं tourist जाते हैं छुट्टियां मनाने के लिए।

    ReplyDelete
  11. अनुत्तरित निशब्द
    सार्थक सामयिक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  12. सही सवाल पूछा है आपने

    ReplyDelete
  13. केदारनाथ त्रासदी की पीड़ा शब्दों के माध्यम से मानो बह गयी यहाँ आपकी कविता में !!!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.