Saturday, 3 August 2013

कुछ ख्याल यूँ ही :


नन्हे अब्र को सूरज निगलते देखा है ,
हौसला हो अगर मुकद्दर बदलते देखा है,
जूनून हो पक्का तो मुश्किल कुछ भी नही ,
मैंने पानी में पर्वत पिघलते देखा है .
(अब्र : बादल)
******************
घावों पे लगाने को मरहम काम आता है
राह में भटके तो रहबर काम आता है
किस किस से छुपाऊँ राज –ए- दिल हमदम
मेरी हर सांस पर तुम्हारा नाम आता है .
*************
चाँद को देखा तो पाने को जी चाहा,
गुलों को देखा तो छूने को जी चाहा ,
चाहत पर काबू किसका चला है भला,
तेरी होठों से मय पीने को जी चाहा .
*************
कोई याद करता है आपको भला कैसे बताएगा,
आप मर जायेंगी , इल्जाम हिचकियों पे जाएगा.
भर देगा याद में अश्कों का समन्दर रो रो के,
पानी खारा होगा, इल्जाम सिसकियों पे जाएगा.
***********
तकदीर हो बिगड़ी तो तदबीर नहीं बनती
हर ख्वाब की एक सी ताबीर नहीं बनती .
दुआ दुआ में भी कुछ फर्क होता है,
हर दुआ की एक सी तासीर नहीं बनती.
**********
....................नीरज कुमार 'नीर' 
चित्र गूगल से साभार 

16 comments:

  1. हौसला हो अगर मुकद्दर बदलते देखा है

    सच है!

    ReplyDelete
  2. Kya Baat, Kya Baat, Kya Baat !!!bahut hi khoobsurat

    ReplyDelete
  3. बहुत ही खूबसूरत, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  4. क्या कहने....
    लाजवाब लाजवाब लाजवाब.....
    :-)

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं नीरज जी !!

    ReplyDelete
  6. बहुत खुबसूरत !!

    ReplyDelete
  7. बढिया मुक्तक ।

    ReplyDelete
  8. खुबसूरत अभिवयक्ति...... .

    ReplyDelete
  9. बहुत खुबसूरत

    ReplyDelete
  10. नीरज जी ..क्या खूब लिखते हैं आप ....

    कोई याद करता है आपको भला कैसे बताएगा,
    आप मर जायेंगी , इल्जाम हिचकियों पे जाएगा.
    भर देगा याद में अश्कों का समन्दर रो रो के,
    पानी खारा होगा, इल्जाम सिसकियों पे जाएगा.

    मैं क्या लिखूं कोई भी टिपण्णी ..सिर्फ आपके लिखे हुए का आनंद ही ले सकता हूँ ...मेरे कंप्यूटर की key board में शायद वो अक्षर ही नहीं हैं जिस से मैं कोई टिपण्णी कर सकूँ ..बस इसी खूबसूरती से लिखते रहिये और आप पर ऊपर वाले की आशीषों की बारिश होती रहे .........

    ReplyDelete
  11. सारे ख़याल अपने आप में बेमिसाल हैं बहुत ही सुन्दर रचना बनी है.

    ReplyDelete
  12. दुआ दुआ में भी कुछ फर्क होता है,
    हर दुआ की एक सी तासीर नहीं बनती.


    बहुत अर्थपूर्ण पंक्ति है, जिसकी दुआ कबूल ना हो वही समझ सकता है ये बात

    ReplyDelete
  13. लग रहा है कोई खज़ाना खोज लिया है मैंने शानदार और अनूठी रचनाओ का ! बहुत बहुत शुक्रिया कविवर , इतना गहरा और इतना विस्तृत काव्य प्रस्तुत करने के लिए !!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.