Friday, 9 August 2013

दिल्ली में फिर नादिर

अभी सीमा पर पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पाकिस्तानी सेना के द्वारा कर दी गयी , मेरी कविता समर्पित है उन्हीं सैनिकों को. अच्छी लगे तो कमेन्ट जरूर दीजिये . 
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शरीफों में शराफत नहीं
सिंह बकरी सा मिमियाए.
देख के, भारत माता का
आंचल भी शर्माए.
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दुष्ट कब समझा है जग में
निश्छल प्रेम की परिभाषा.
अपनी ही लाशों पर लिखोगे
क्या देश की अभिलाषा.

लाल पत्थर की दीवारें भी
महफूज़ नहीं रख पाएंगी .
सीमा पर बही रक्त जब
दिल्ली तक तीर आएगी .

सत्ता सुख क्षणिक है
सदैव नहीं रह पायेगा.
दिल्ली की चौड़ी सड़कों पर
जब फिर से नादिर आएगा.

सत्ता के स्वार्थ में
इतिहास भुला कर बैठे हैं.
तत्क्षण रौशनी के लिए
घर को जला कर बैठे हैं.

वंचक है, खुद ही को ठग रहे
दीवाने हैं, ये सत्ता के मलंग है .
अपनी संतती को निगलने वाले
काले विषधर भुजंग हैं .

दह में उतरकर भीतर
व्याल बांधना होगा.
तोड़ दन्त विषधर  के
हथेलियों में फन थामना होगा .

कवि कर्म है मेरा
तुम्हें जगाता रहता हूँ.
आने वाले कल की
तस्वीर दिखाता रहता हूँ.

आँखें बंद कर लेने से
तस्वीर नहीं बदलती है .
दवा कडवी हो कितनी भी
फिर भी निगलनी पड़ती है .

          ..................नीरज कुमार ‘नीर’


कुछ शब्दार्थ /भावार्थ :
1.     शरीफ : प्रत्यक्ष में नवाज शरीफ, वैसे सभी लोग जो खुद को सभ्य दिखाते हैं परन्तु अन्दर से कुटिल होते हैं.
2.     सिंह : भारत में सबसे ज्यादा सिंह है, जंगल का राजा भी और आदमी भी जो सिंह का टाइटल रखते हैं, फिर भी भारत एक कमजोर राष्ट्र है .
3.     भारत माँ का आंचल: माँ आंचल में छुपाकर बच्चों को दूध पिलाती है , वैसे आजकल नहीं पिलाती ये अलग बात है, लेकिन भारत माँ की कल्पना वैसे माँ के रूप में है जो दूध पिलाती है ..

4.     लाल पत्थर की दीवारें : दिल्ली में संसद समेत कई भवन जो लाल पत्थर से बने है. 
5.     नादिर : नादिर शाह, कुख्यात विदेशी आक्रमण कारी जिसने दिल्ली को लूटा एवं लाखों लोगों को क़त्ल किया.  
6.     वंचक : ठग   
7.     दह : यमुना में वह जगह जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने कालिया दमन किया था .
8. व्याल : सर्प 


17 comments:

  1. बहुत ही ओजपूर्ण और भाव प्रवल कविता और
    सोते नेताओं को जगाने की बढ़िया अभिव्यक्ति !!बहुत सुंदर ...

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  2. बिल्कुल सही बात है सर दवा कड़वी है तो क्या हुआ जब तक उसका सेवन नहीं करेंगे तो स्वस्थ कैसे होंगें।

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  3. आँखें बंद कर लेने से
    तस्वीर नहीं बदलती है .
    दवा कडवी हो कितनी भी
    फिर भी निगलनी पड़ती है .--bahut sundar aur chatawani deti rachna ,badhai
    latest post नेताजी सुनिए !!!
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!


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  4. नीरज जी .नमस्कार ..आपने जो मर्म .और आहत संवेदना अपनी कविता की पंक्तियों में भरी है .वही भाव और अफ़सोस आज लगभग हर देशभक्त हिन्दुस्तानी के दिल में उमड़ रहा है ..मगर हम सिर्फ अफ़सोस ही कर सकते हैं ...आप सोते हुए को जगा सकते हो मगर किसी जगे हुए को क्या आप जगा सकते हैं ? नहीं न ....। आपकी कविता के शब्दों का चयन बहुत अच्छा है । इतनी सुंदर कविता के लिए आपको साधुवाद ।

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  5. नीरज जी सबसे पहले तो एक आम भारतीय के भावों को जो शब्द आपनें दिए हैं उसके लिए आभार ! आपनें अपनीं रचना में सच्चाई दिखाई है !!

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  6. बढ़िया अभिव्यक्ति !!बहुत सुंदर ..

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  7. काश भारत को अपनी विशालता समझने के कुछ सार्थक उदाहरण मिलें, अभी तक तो हम क्षुद्रता में ही जी रहे हैं।

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  8. सत्ता के स्वार्थ में
    इतिहास भुला कर बैठे हैं.
    तत्क्षण रौशनी के लिए
    घर को जला कर बैठे हैं...

    सच कहा है नीरज जी ... काश अपने लंबे इतिहास से कुछ सीख पाते हम ... कही नाम मिट न जाए हमारा इस भारत खंड का आने वाले १००-२०० सालों में ...

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  9. श्री नीरज जी,
    वर्तमान परिपेक्ष्य पर बड़ी सटीक रचना |
    भारत की हम लोगो वाली नव-पीढ़ी में, आप जैसे ओजसवी कवि यथार्थ से परिचित करा सकते हैं ,न भ्रष्ट मिडिया ,न नेता और उनके चमचे |
    शब्द -शब्द ने प्रभावित किया |
    आभार
    -डॉ अजय

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  10. जो लोग इतिहास से कुछ सीखते नहीं ,वे इतिहास का ग्रास बन जाते हैं!

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  11. हर हिंदुस्तानी के दिल की आवाज़ यही हैं … ओजस्वी भाव

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  12. समसामयिक अभिव्यक्ति

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  13. neeraj / kya tum fb par ho --------------i need sm help / about blogong ----------------mere blog se aapko mera fb link mil jaega

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  14. बिलकुल सही .....जो विनम्रता का मुल्य नहीं समझता उससे दोस्ती की उम्मीद नहीं होनी चाहिये और जो निज-स्वार्थ में डूबे बैठे हैं उन्हें भी ये नहीं भूलना चाहिये कि स्वार्थ का जिन्न एक दिन अपने मालिक को ही निगल जाता है
    बहुत उम्दा रचना ...

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  15. आँखें बंद कर लेने से
    तस्वीर नहीं बदलती है .
    दवा कडवी हो कितनी भी
    फिर भी निगलनी पड़ती है sunder lines

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  16. अभी भी बहुत ज्यादा नहीं बदला है ये मंजर ! आज भी ये शब्द ज्यूँ के त्यों हैं !

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.