Friday, 29 November 2013

उदास आँगन


भारत में बुजुर्गों की स्थिति जिस तरह दयनीय होती जा रही है उस पर विचार करने की आवश्यकता है । संयुक्त परिवार के टूटने के साथ ही भारतीय पारिवारिक संस्कार एवं मर्यादाएं भी टूटकर बिखर रही हैं । कुछ तो मजबूरियां होती है और कुछ बच्चों की अपने बुजुर्ग माँ बाप के प्रति उदासीनता भी। भागती दौड़ती जिंदगी में खास कर पढे लिखे नौजवान जिस तरह स्वकेंद्रित होते जा रहे हैं यह शुभ संकेत नहीं है । आखिर उम्र किसके साथ रहा है । एक दिन तो सबको उसी गली से गुजरना है। प्रस्तुत है इसी की  विवेचना करती एक कविता (नवगीत ):::::
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बहुत दिनों से कोई ना आया 
आंगन रहा उदास 

आँगन जिसमे खुशियाँ लोटी 
गूंजी थी किलकारी 
अब एक पल भी जीना 
लेकिन 
लगता कितना भारी 
दिवस का यह चौथा पहर 
तनहाई और  सूना घर 
कौओं संग बातें करती 
उसको ही
सुख दुःख कहती 
सूने घर में बुढ़िया अकेली
बैठी चौके के पास 

सँग नहीं अब कंचन काया,
पास नहीं  
कर में माया.
नींद निशा भर
आती नहीं 
ममता मगर जाती नहीं 
सूरज के उगने के संग 
जगती है नई
नित आस 
देखे बिन  निज  लाल  को 
बुझती नहीं आखों की प्यास 

दो गह्वर से सावन झरता 
हृदय हो जाता 
खारा 
जिन पौधों को सस्नेह सींचा 
परदेश  बसा प्यारा 
चूल्हे में लकड़ी जलती 
भीतर भीतर जलता मन 
उम्मीद की पतली डोर से 
टिका हुआ है 
निर्बल तन .
जीवन में कोई रंग नहीं
नहीं रंग का प्रयास .
बहुत दिनों से कोई न आया 
आंगन रहा उदास 
सूने घर में बुढ़िया अकेली
बैठी चौके के पास ..
नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer  

अगर आपके दिल तक बात पहुचे तो अपना समर्थन अवश्य दें .


चित्र गूगल से साभार.

22 comments:

  1. हजारोँ एकाकी वृद्धोँ की अकथ कहानी को शब्द देने के लिए आभार..

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  2. बहुत ही मार्मिक भाव ....सुंदर रचना ........!!

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  3. बहुत ही मार्मिक ...एकल होते परिवारों के कारण बुज़ुर्गों का जीवन सच में अकेलापन से मिलकर बहुत दुखदायी हो गया है
    आपकी लेखनी और सोच को नमन

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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    1. बहुत आभार राजीव जी ..

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  5. बहुत ही प्यारे ढंग से आपने ह्रदय को छूने वाले भाव उकेरे हैं. सचमुच इनकी व्यथा कौन जान पाता है. रोटी की मजबूरी. कितना कुछ छूट जाता है उसके पीछे.

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  6. बहुत सुंदर मार्मिक भाव लिए उत्कृष्ट रचना ....!
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    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

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  7. सुंदर पंक्तियों से सजी आपकी सुंदर कृति , बढ़िया नीरज भाई
    नया प्रकाशन --: अपने ब्लॉग या वेबसाइट की कीमत जाने व खरीदें बेचें !
    बीता प्रकाशन --: तेरा साथ हो , फिर कैसी तनहाई

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  8. बहुत सुन्दर....मन के भीतर उतरती रचना....

    अनु

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  9. बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  10. सोचने को मजबूर करती कविता। सत्‍य।

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  11. दो गह्वर से सावन झरता
    मन हो जाता खारा
    जिन पौधों को स्नेह से सींचा
    परदेश बसा है प्यारा.मर्मस्पर्शी .....

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  12. शीर्षक ही इतना बहेतरीन है कि क्या कहा जाए … बहुत अच्छा।

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  13. Waah Neeraj ji,bahut hi shandar,marmik,charitra chitran aapki,,badhai ho aapko,meri hardik shubh kamanaye aapko...

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  14. अत्यंत मार्मिक रचना नीरज जी !

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  15. शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का समाज सापेक्ष लेखन का आपके। बहुत सुन्दर भाव चित्र उभारा है इस रचना में -


    दो गह्वर से सावन झरता
    मन हो जाता खारा
    जिन पौधों को स्नेह से सींचा
    परदेश बसा है प्यारा.
    चूल्हे में लकड़ी जलती,
    भीतर जलता मन.
    उम्मीद की पतली डोर से
    टिका हुआ निर्बल तन .
    जीवन में कोई रंग नहीं
    नहीं रंग का प्रयास .
    बहुत दिनों से कोई न आया
    आंगन रहा उदास
    सुने घर में बुढ़िया अकेली
    बैठी चौके के पास ..

    ..... नीरज कुमार ‘नीर’

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  16. न सिर्फ दिल के पास .. बल्कि छू गई दिल को ...
    आँगन का मूक साथ ... अम्मा के साथ ...

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  17. सुंदर एवं आवश्यक रचना ! आभार आपका !
    उस सीने पर थपकी पाकर
    तुम्हे नींद आ जाती थी !
    उस ऊँगली को पकडे कैसे
    चाल बदल सी, जाती थी !
    वो ताक़त कमज़ोर दिनों में,धोखा देती अम्मा को !
    काले घने , अँधेरे घेरें , धीरे धीरे , अम्मा को !

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  18. बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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  19. भावपूर्ण रचना ....

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.