संस्कृति का क्रम अटूट
पांच हज़ार वर्षों से 
अनवरत घूमता
सभ्यता का 
क्रूर पहिया.
दामन में छद्म ऐतिहासिक
सौन्दर्य बोध के बहाने
छुपाये दमन का खूनी दाग,
आत्माभिमान से अंधी
पांडित्य पूर्ण सांस्कृतिक गौरव का
दंभ भरती 
सभ्यता.
मोहनजोदड़ो की कत्लगाह से भागे लोगों से
छिनती रही 
अनवरत, 
उनके अधिकार,  
किया जाता रहा वंचित, 
जीने के मूलभूत अधिकार से, 
कुचल कर  सम्मान 
मिटा दी गयी
आदमी और पशु के बीच की
मोटी सीमा.
छीन लिया उनका भगवान भी 
कर दिया स्थापित 
अपने मंदिर में 
बनाकर महादेव.
अपना कटा अंगूठा लिए एकलव्य 
फिरता रहा जंगल जंगल
रिसता  रहा उसका खून 
सदियों से वह भोग रहा है असह्य पीड़ा. 
बिजलियों सी कौंध रही है 
धनुष चलाने की 
उसकी इच्छा है दमित . 
द्रोणाचार्य की आरक्षित विद्या 
देश, समाज को सदा नहीं रख सकी सुरक्षित.
यवनों ने अपनी रूक्षता के आगे 
कर दिया घुटने टेकने को मजबूर.
सदियों सिजदे में झुका रहा सर.
झुके हुए सर से भी  नहीं देखा 
नीचे एकलव्य के अंगूठे से रिसता खून 
बंद कर लिया स्वयं को 
शंख शल्क में.
खंडित शौर्य एवं अभिमान के बाद भी 
एकलव्य की पीड़ा अनदेखी रही 
मोहनजोदड़ो की कत्लगाह की 
सीमा अब फ़ैल रही है 
जंगलों , घाटियों और कंदराओं तक , 
अब पर्ण कुटियों के नीचे खोजा जा रहा है  
कीमती धातु , कोयला, लोहा, यूरेनियम , सोना.
अपनी जमीन और जंगल से किये जा रहे हैं विस्थापित
कभी भय से कभी लालच देकर , 
एकलव्य के कटे अंगूठे में अभी भी है प्राण,
अभी भी है छटपटाहट 
पुनर्जीवित होने की और 
खीचने की प्रत्यंचा.
एक दिन एकलव्य का अंगूठा 
जुड़ जाएगा और
वह वाण पर रखकर तीर 
उसी अंगूठे से खीचेगा प्रत्यंचा 
और भेदेगा 
द्रोणाचार्य के आत्माभिमान को 
लग जाएगी आग सोने के खानों में. 
.... नीरज कुमार नीर #neeraj_kumar_neer
(अगर बात दिल तक पहुचे तो अपनी टिप्पणी अवश्य दें )
(अगर बात दिल तक पहुचे तो अपनी टिप्पणी अवश्य दें )
चित्र गूगल से साभार 

http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/01/blog-post_21.html
ReplyDeleteएकलब्य के कटे अंगूठे में अभी भी प्राण है .... क सुंदर वर्णन पांच हज़ार वर्षों के छटपटाहट को.. बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteऐतिहासिक और पौराणिक परिप्रेक्ष्य में आधुनिक पीड़ा आपने बेहद खूबसूरत तरीके से प्रस्तुत की है. बेजोड़ शब्दबाण है यह. अति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबात दिल तक न पहुँचे ऐसा संभव ही नहीं ... भावनाओं का उबाल है जो झिंझोड़ कर रख दे आत्मा को।
ReplyDeleteपीड़ा का जैसे शब्दों से प्रसारण हो रहा है ... निशब्द हूँ
एकलव्य का दर्द है आपकी रचना के हर शब्द में
ReplyDeleteभावपूर्ण अहसास....
http://mauryareena.blogspot.in/
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
नई पोस्ट : पलाश के फूल
बात जिनके दिल तक पहुँचती है
ReplyDeleteउनके ही दिल किसी काम के नहीं होते
ऐसे बेदिलों के दिल ही दिल लगाते है
दिल से निकली बात को दिल तक
पहुँचाने में :)
अति सुन्दर रचना......
ReplyDeleteरचना का हर शब्द एकलव्य की वेदना को झंकृत करता है ! जिस दिन यह कटा अँगूठा जुड़
ReplyDeleteजायेगा भारत के भविष्य की इबारत सुनहरे अक्षरों से लिखी जायेगी ! बहुत सुन्दर रचना !
सच है एक वर्ग जिसका प्रतिनिधत्व एकलव्य करता है उसका अधिकार ,योग्यता को उसके अंगूठा काटकर पंगु बना दिया गया है ! वही अभिमानी .घमंडी शोषक वर्ग बलशाली यवन के सामने सर झुकाकर उनकी स्तुति करते रहे परन्तु अभी तक अपनी भूल को सुधारने की कोई कार गर कोशिश नहीं की .इसीलिए आपका कहना-..." जिस दिन यह कटा अँगूठा जुड़ जायेगा भारत के भविष्य की इबारत सुनहरे अक्षरों से लिखी जायेगी !" उचित है ..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteनई पोस्ट मौसम (शीत काल )
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
पौराणिक परिपेक्ष्य मे लिखी गई बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteबहुत खूब .. एकलव्य एक विचार है ... एक हाव है जो नेतिक और अनेतिकता के भाव को समाज में दर्शाता है ... बहुत ही उम्दा, प्रभावी और दिल के गहरे तक उतरने वाली रचना है ...
ReplyDeleteक्षमतायें वंचित रहें तो क्रंदन होता ही है।
ReplyDeleteसुन्दर काव्यातमक प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : खान अब्दुल गफ्फार खान
पर गांधी को तो आपने मार दिया