जब तुम नहीं थे, तुम्हारी
यादों की खुशबू आई
हर गली, हर घड़ी
मोड़ जो भी मुड़ा
बस्ती, जंगल,
भीड़ या कि तन्हाई
संग संग मेरे रही
सदा तुम्हारी परछाई ।
जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई
घने धूप का डेरा
या अँधियारे ने घेरा
बादे शबा थी या कि
डूबते सूरज की लालाई
काल सागर पर
स्मृति लहरें
लेती रही अंगड़ाई ।
जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई
जिंदगी बरहम रही
आँधियाँ लौ बुझा आई
मन के आँगन मे
रही, बहती
आँचल की पूरबाई
जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई
(c) neeraj kumar neer
जिंदगी बरहम रही
आँधियाँ लौ बुझा आई
मन के आँगन मे
रही, बहती
आँचल की पूरबाई
जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई
(c) neeraj kumar neer
सुन्दर भाव पूर्ण रचना !
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर आये !!
Yaad hi to hai jise hum sajo lete hain jo kisi ke na hone par bhi ahsaas deta rahta hai hone ka bhaawpurn lajawaab abhivyakti ek baar fir se ... Sadar !!
ReplyDeleteभाव प्रधान रचना !
ReplyDeleteकोमल अहसासों से युक्त भावपूर्ण प्रस्तुति !
ReplyDeleteमन के बागों में डोलती है अभी वही पुरवाइ ,
ReplyDeleteजब तुम नहीं थे तुम्हारी………
:) :)
Deleteवाह खूबसूरत यादों की खुशबू ....कोमल दिल से उठता महकता धुआं
ReplyDeleteख़ूबसूरत याद. सुंदर रचना.
ReplyDeleteयादें तो उनके न होने पे ही आती हैं ... और बहुत ही खूबसूरत अंतस को महका जाती हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीय नीरज जी! "गोपाल दास नीरज जी ने यादों की तुलना एक छोटे बच्चे की तरह की है, जो समझाने पर भी नहीं समझते!" सुन्दर कविता के लिए बधाई!
ReplyDeleteधरती की गोद
जब तुम नहीं थे तुम्हारी याद आई
ReplyDeleteऔर यह कविता हमें पसंद आई
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति... सर
ReplyDeletebahut he sundar rachana neeraj ji
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