Saturday, 1 November 2014

जब तुम नहीं थे तुम्हारी यादों की खुशबू आई


जब तुम नहीं थे,  तुम्हारी
यादों की खुशबू आई

हर गली,  हर घड़ी
मोड़ जो भी मुड़ा
बस्ती, जंगल,
भीड़ या कि तन्हाई
संग  संग मेरे रही
सदा तुम्हारी परछाई ।

जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई

घने धूप का डेरा
या अँधियारे ने घेरा
बादे शबा थी या कि
डूबते सूरज की लालाई
काल सागर पर
स्मृति लहरें
लेती रही अंगड़ाई ।

जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई

जिंदगी बरहम रही
आँधियाँ लौ बुझा आई
मन के आँगन मे
 रही,  बहती
आँचल की पूरबाई

जब तुम नहीं थे तुम्हारी
यादों की खुशबू आई
(c) neeraj kumar neer 

13 comments:

  1. सुन्दर भाव पूर्ण रचना !
    कृपया मेरे ब्लॉग पर आये !!

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  2. Yaad hi to hai jise hum sajo lete hain jo kisi ke na hone par bhi ahsaas deta rahta hai hone ka bhaawpurn lajawaab abhivyakti ek baar fir se ... Sadar !!

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  3. कोमल अहसासों से युक्त भावपूर्ण प्रस्तुति !

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  4. मन के बागों में डोलती है अभी वही पुरवाइ ,
    जब तुम नहीं थे तुम्हारी………

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  5. वाह खूबसूरत यादों की खुशबू ....कोमल दिल से उठता महकता धुआं

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  6. ख़ूबसूरत याद. सुंदर रचना.

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  7. यादें तो उनके न होने पे ही आती हैं ... और बहुत ही खूबसूरत अंतस को महका जाती हैं ...

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीय नीरज जी! "गोपाल दास नीरज जी ने यादों की तुलना एक छोटे बच्चे की तरह की है, जो समझाने पर भी नहीं समझते!" सुन्दर कविता के लिए बधाई!
    धरती की गोद

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  9. जब तुम नहीं थे तुम्हारी याद आई
    और यह कविता हमें पसंद आई

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  10. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति... सर

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  11. bahut he sundar rachana neeraj ji

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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