यूं तो वजह नहीं कुछ खास है
पर सुगना बहुत उदास है
पत्नी के कानों में और
गेंहू के पौधों पर बाली नहीं है
होठों पर पपड़ी पड़ी है ....
लाली नहीं है
रूठती तो है
पर जिद करे ..... ऐसी घरवाली नहीं है
पर सुगना का भी तो फर्ज़ है
लेकिन क्या करे, उस पर तो कर्ज है
उसे अपनी चिंता नहीं है
पर जानवर को क्या खिलाएगा
सूख चुंकी हर तरफ घास है
यूं तो वजह नहीं कुछ खास है .......... पर सुगना ...........
सुगना बुढ़ौती का बेटा है
घर का अकेला ज़िम्मेवार है
अम्मा को सुझाई नहीं देता है
बाबा बीमार है
बेटा पढ़ने मे तेज है
पर क्या करे
सरकारी स्कूल का मास्टर फरार है
मास्टर जब आता है
बेटा खिचड़ी खाता है
और एक एकम एक गाता है
वह एक से दो नहीं पहुंचा है
और न पहुँचने की आस है .......
यूं तो वजह नहीं कुछ खास है .......... पर सुगना.....
वह परेशान है
मन भी खिन्न है
पर वह बेवजह दंगा नहीं करता है
अपनी भारत माँ को सरेआम नंगा नहीं करता है
वह बेरोजगार है
पर गद्दार नहीं है
वह भूखा रहकर भी वन्देमातरम गाता है
वह जानता है
उसकी स्वतन्त्रता तभी तक है
जब तक राष्ट्र जिंदा है
वह पढे लिखों की नादानियों पर शर्मिंदा है
वह एक जिंदा आदमी है और
जिंदा यह एहसास है
यूं तो वजह नहीं कुछ खास है .......... पर सुगना......
..... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#jnu #kanhaiya #vandematram #master #patni #janwar #gharwali #hindi_poem #swatantrata #rashtra #independenceday
पर सुगना बहुत उदास है
पत्नी के कानों में और
गेंहू के पौधों पर बाली नहीं है
होठों पर पपड़ी पड़ी है ....
लाली नहीं है
रूठती तो है
पर जिद करे ..... ऐसी घरवाली नहीं है
पर सुगना का भी तो फर्ज़ है
लेकिन क्या करे, उस पर तो कर्ज है
उसे अपनी चिंता नहीं है
पर जानवर को क्या खिलाएगा
सूख चुंकी हर तरफ घास है
यूं तो वजह नहीं कुछ खास है .......... पर सुगना ...........
सुगना बुढ़ौती का बेटा है
घर का अकेला ज़िम्मेवार है
अम्मा को सुझाई नहीं देता है
बाबा बीमार है
बेटा पढ़ने मे तेज है
पर क्या करे
सरकारी स्कूल का मास्टर फरार है
मास्टर जब आता है
बेटा खिचड़ी खाता है
और एक एकम एक गाता है
वह एक से दो नहीं पहुंचा है
और न पहुँचने की आस है .......
यूं तो वजह नहीं कुछ खास है .......... पर सुगना.....
वह परेशान है
मन भी खिन्न है
पर वह बेवजह दंगा नहीं करता है
अपनी भारत माँ को सरेआम नंगा नहीं करता है
वह बेरोजगार है
पर गद्दार नहीं है
वह भूखा रहकर भी वन्देमातरम गाता है
वह जानता है
उसकी स्वतन्त्रता तभी तक है
जब तक राष्ट्र जिंदा है
वह पढे लिखों की नादानियों पर शर्मिंदा है
वह एक जिंदा आदमी है और
जिंदा यह एहसास है
यूं तो वजह नहीं कुछ खास है .......... पर सुगना......
..... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#jnu #kanhaiya #vandematram #master #patni #janwar #gharwali #hindi_poem #swatantrata #rashtra #independenceday
एक आम आदमी और एक so called पढ़े लिखे आदमी के मध्य का सटीक अंतर दिखाती है यह कविता । JNU जैसी कई संस्थाओं के तथाकथित scholarly छवि को आईना दिखाती है यह कविता ।
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ReplyDeleteऐसे सुगना इस समाज में न जाने कितने हैं ! महलों की रौशनी इतनी हो गयी कि अँधेरी झोपडी का अँधियारा अब किसी को नजर नही आता !! सार्थक शब्द नीर साब
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-03-2016) को "दुखी तू भी दुखी मैं भी" (चर्चा अंक - 2286) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यू तो वजह नहीं है ख़ास ....पर आप की रचना बहुत खास है बहुत सुंदर .
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