क्यों गाती हो कोयल
होकर इतना विह्वल
है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास
वियोग की है वेदना
या पारगमन है पास
मत जाओ न रह जाओ
यह छोड़ अम्बर भूतल
क्यों गाती हो कोयल
होकर इतना विह्वल
तू गाती तो आता
यह वसंत मदमाता
तू आती तो आता
मलयानिल महकाता
तू जाती तो देता
कर जेठ मुझे बेकल
क्यों गाती हो कोयल
होकर इतना विह्वल
कलियों का यह देश
रह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
लेकर प्रेम सन्देश
गाना मेरी खिड़की
पर कोई गीत नवल
क्यों गाती हो कोयल
होकर इतना विह्वल ..
नीरज कुमार नीर ........ #neeraj_kumar_neer
इस गीत को मेरे एक मित्र ने अपनी खूबसूरत आवाज से संवारा हैं ... आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर इसे अवश्य सुने .. https://soundcloud.com/parul-gupta-2/kyu-gati-ho
#कोयल #कोयल #गीत #prem_geet
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteकोयल तो उसी मौसम की बातें करती ही ... और इस में जीती भी है ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
कोकिला अपनी सरस तान में वसंत की पुकार भर कर वातावरण गुँजा देती है -मोहक चित्र1
ReplyDeleteआहा..बहुत सही सवाल किया है कोयल से आपने.
ReplyDeleteबहुत सही प्रश्न। कोयल को है पिया मिलन की आस।
ReplyDeleteकोयल की पुकार को अलग अलग कोण से देखने का आपका नज़रिया बहुत अच्छा लगा.. कभी मैंने भी कोयल की इस कूक को हूक कहा था और लिखा था:
ReplyDeleteएक माँ
गर्मी की तपती धूप में
जलते हुए सूरज से बचती
कोख में अपने, लिए बच्चे को
दुःख से चीखती, चिल्लाती और फरियाद करती.
पर नहीं उसकी कोई फरियाद सुनता.
उलट इसके, लोग कहते
कितना मीठा गा रही है
और सब मिलकर उसे हैं मुँह चिढ़ाते.
सिर छिपाने को
न कोई घर है उसके पास,
ना मह्फूज़ सी कोई जगह
जाकर जहाँ बच्चा जने वो.
एक घर में घुस के चोरी से
जनम देकर वो बच्चे को वहाँ से भाग आई
थे जहाँ पहले से कुछ बच्चे
उन्हीं के बीच रख अपने भी बच्चे को
निकल आई वहाँ से, लोगों से नज़रें चुरा कर.
जब कभी तपती हुई सी दोपहर में
कूक कोयल की सुनाई दे कहीं से तो
उसे सब गीत कहते हैं
मगर शायद
वो माँ की टीस भी हो सकती है दिल की
ये सोचा है किसी ने ?
आपकी कविता बहुत सुन्दर है ..
Deleteमर्मस्पर्शी काव्य रचना
ReplyDeleteसुंदर गाया है पारुल गुप्ता जी ने..
अच्छा लिखा आपने
(दो-एक जगह गाते हुए कुछ बदलाव हैं)
:)
हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं !
सुंदर गीत एवं पारुल जी के मधुर स्वर में सुन्दरतम प्रस्तुतीकरण ! आप दोनों ही बधाई के पात्र हैं !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...सुना तो पहले ही था .....शुक्रिया पारूल सुनवाने का
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार 06 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
...बहुत ही सुन्दर बहुत ही सुकून भरी पंक्तियाँ..!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर. ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत..मधुर आवाज के साथ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मधुर गीत ... अभी बरसात में काफी समय है मगर बारिश की याद खूब आयी इसे पढ़ते हुए।
ReplyDeleteअफ़सोस मैं पारुल की आवाज़ में गीत नहीं सुन पाई। soundcloud पिछले कई दिनों से नहीं खुल पा रहा बहुत कोशिश करके भी :(
कभी-कभी शब्द अपर्याप्त होते हैँ मन के भावोँ को व्यक्त करने हेतु, आज मेरी मनोदशा भी कुछ ऐसी ही है॥ सुंदर, सहज, और पठनीय। आनंद आ गया...बहुत बहुत आभार, हिँदी जगत को अनमोल कृतियाँ देने के लिए।
ReplyDeleteजब मेरे मन में उठते हूक
ReplyDeleteदी सुनायी कोयल की कूक
बहुत सुन्दर
बेहतरीन रचना , नीरज भाई मजा आ गया , झक्कास !
ReplyDeleteI.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
अति सुंदर भाव कोयल सच में............
ReplyDeletebahut sundar geet
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत ..बधाई मित्र
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , मन भावन गीत .. बधाई आप को
ReplyDeleteSundar saral bhasha mein
ReplyDeleteManoram vyakhya..geet mein bhi wahi mithaas hai
कलियों का यह देश
ReplyDeleteरह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
लेकर प्रेम सन्देश
गाना मेरी खिड़की
पर कोई गीत नवल
क्यों गाती हो कोयल
होकर इतना विह्वल ..
क्या बात है ! बहुत ही खूबसूरत
Really enjoyed!!
ReplyDeleteVinnie
सुंदर, भाव और शब्दों का अच्छा समिश्रण
ReplyDeleteसुंदर, भाव और शब्दों का अच्छा समिश्रण
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना............
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in