बरगद का वो बूढ़ा पेड़,
खड़ा चुपचाप सड़क किनारे,
आने जाने वालों को
जाने कब से रहा निहारे .
कितने राजाओं को बनते देखा,
राज्यों को
बिगड़ते देखा .
उसकी घनी शीतल छांव में
अगणित पथिक बैठ सुस्ताये
डोली में बैठ, देख पिया को
कितनी दुल्हनियों के नैन लजाये.
सब देखा , निर्विकल्प, निष्कपट.
उसे कुछ भी अभिष्ट नहीं था.
अपने इर्द गिर्द से निरपेक्ष ,
उसे कुछ भी इष्ट नहीं था.
उसने सीखा था बस देना ,
नहीं कभी कुछ किसी से लेना .
शीतल छाया , चिड़ियों का बसेरा ,
स्वच्छ वायु, थके को डेरा.
उसने लिया नहीं कुछ, सभी से मूक था,
अपनी मातृ धरा का योग्य सपूत था.
..
अब सड़क चौड़ी हो रही है
बूढ़े बरगद को कटना होगा
विकास यज्ञ की अग्नि में,
बूढ़े बरगद को जलना होगा .
सड़क के उस पार खड़ा है,
जगमग बंगला आलीशान,
जिसमे रहते है कुछ
निष्ठुर, ताकतवर इंसान.
उस बंगले की कीमत पर ही
बूढ़े बरगद को हटना है,
बंगले की शान
बनी रहे
इसलिये ही बरगद को कटना है.
आरी चली और लो बरगद कट गया,
सदियों का इतिहास पलों में सिमट गया.
लेकिन बरगद के कटने पर यह कौन चिल्लाता है?
बंगले से नंगे पांव कोई दौड़ा आता है.
बंगले की स्वामिनी है, आती है भागे भागे,
इसने बांधे थे कभी बरगद पर सुहाग के धागे.
बरगद के साथ ही, धागा भी बिखर गया
सुहाग की चिंता में उसका मन डर गया.
पर बूढ़े बरगद ने नहीं कभी श्राप दिया
उसने निज स्वार्थ में नहीं कभी पाप किया.
कटकर भी उसकी देह कितने काम आएगी,
उसकी देह से अब कितनी देह जलायी जायेगी.
.............. #नीरज कुमार ‘नीर’ #neeraj_kumar_neer
#hindi_poem
#hindi_poem
Aaj ka yatharth... ya kahiye, maanav ke swarth ka spasht varnan .... पर बूढ़े बरगद ने नहीं कभी श्राप दिया
ReplyDeleteउसने निज स्वार्थ में नहीं कभी पाप किया .
... mujhe ye panktiyaan vishesh acchhi lagin... bahut khoob
धन्यवाद प्रदीप जी , बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुभकामनायें --
गदगद बरगद गुदगुदा, हरसाए संसार |
कई शुभेच्छा का वहन, करता निश्छल भार |
करता निश्छल भार, बांटता प्राणवायु नित |
झुकते कंधे जाँय, जिए पर सदा लोक हित |
कैसा मानव स्वार्थ, पार कर जाता हर हद |
इक लोटा जल-ढार, होय बरगद भी गदगद
रविकर जी आपका बहुत बहुत आभार, मेरी सम्पूर्ण कविता पर आपकी ये चंद पंक्तियाँ भारी है. कविता पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. कृपया ब्लॉग पर आते रहिएगा.
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete@madhu singh
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका. यूँ ही स्नेह बनाये रखिये.
शुक्रिया रविकर जी मैने लिंक-लिक्खाड़ का भ्रमण किया, बहुत आनंददायक अनुभव रहा. मेरी कविता का लिंक वहाँ डालने के लिए बहुत आभार.
ReplyDeletesuper like
ReplyDeleteशुक्रिया, ब्लॉग पर आपका बहुत बहुत स्वागत है महेश जी. कृपया आते रहिएगा.
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-02 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
आज की नयी पुरानी हलचल में ..... मर जाना , पर इश्क़ ज़रूर करना ...
संगीता स्वरूप
.
Madan Mohan Saxena ji aapka blog par bahut bahut swagat. Kavita pasand karne ke liye bahut abhar. Please keep visiting.
ReplyDeleteबहुत आभार रविकर जी. मैं कृतज्ञ हूँ.
ReplyDeleteनीरज जी, अगर आप पास होते तो मैं भी आपसे अपना ब्लॉग बनवाने की कला सीख लेता. कोशिश तो मैंने भी की थी पर पता नहीं क्या बना है, न तो उसमे पता चलता है, कोई आया है, या किसी ने कोई टिप्पणी छोड़ी है, न ही किसी के कमेंट्स पड़ने को मिलते है, न ही पता चलता है की कौन कब आया और कब चला गया.
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद पासी जी मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिये. मैं भी कहाँ ब्लॉग का जानकार हूँ, एक साल से कुछ घटा कर कुछ बढाकर आज यहाँ तक पंहुचा. मैं आपके वर्डप्रेस पर गया था , वहाँ कमेन्ट भी किया था.
Deleteloved it and enjoyed each nd every line thoroughly, Neeraj ji !
ReplyDeleteबहुत आभार निवेदिता जी .
Deleteआपकी कविता पर क्या कमेंट करूँ ............"सही शब्द ही नहीं मिल रहे हैं " सिर्फ एक शब्द ही कहूंगा "अदभुत ".........
ReplyDeleteबहुत शुक्रीया चंदर मल्होत्रा जी.
Deleteसच कहा आपने, जिसकी दुआओं पर हम जीते है, अपने छोटे से स्वार्थ के रास्ते आने पर हम उन्हें भी नहीं छोड़ते।
ReplyDeleteबूढ़े बरगद की व्यथा का बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने...!!
ReplyDeleteshukriya manisha sahu
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteकुछ शब्दों में ही सब कुछ समेट दिया आपने। बहुत खुब्। स्वयं शून्य
ReplyDeleteआधुनिक और समकालीन विषय से सम्बन्धित विचार की अभिव्यक्ति सुन्दर कविता के रूप में! पढ़ कर गद्-गद् हो गया ह्रदय! धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'सोमवार' ०८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना....
अद्भुत ,लाजवाब
Shaandaar jaandar jabardast
ReplyDeleteनीर
ReplyDeleteआज फिर से आना हुआ तुंहरी पोस्ट पर। बहुत अच्छा लिखा है ।
आपकी सारी रचनाओ मे से सबसे श्रेष्ट रचना है यह। 🙏
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