साहित्यिक पत्रिका संवेदन में प्रकाशित
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नदी मर गयी,
बहुत तड़पने के बाद.
घाव मवादी था.
आती है अब महक.
अब शहर में गिद्ध नहीं आते.
कुत्ते लगाते हैं दौड़
उसकी मृत देह पर
फिर भाग खड़े होते हैं.
नदी जवान थी, खूबसूरत.
वह थी चिर यौवना.
भर देती थी जीवन से.
खेलती थी , करती थी अठखेलियाँ,
छूकर कभी इस किनारे को
कभी उस किनारे को.
उछालती जल, करती कल्लोल,
भिंगोती तट के पीपल को.
पुरबाई में पीपल का पेड़
झूम कर करता था अभिषेक.
करता अपने प्रिय पातों का अर्पण
प्रेम के भेट स्वरुप ..
दाह से पहले , ठंढे शीतल जल में
जब मृत शरीर को कराते थे स्नान,
आत्मा तृप्त हो उठती थी .
चहचहा उठता था घने पीपल पर
बैठा पक्षियों का समूह ,
मानो गवाही देता था
स्वर्ग की सीढ़ी के उतरने का.
जीवन तभी तक है
जब तक गति है.
नदी किनारे रहने वाला हंसों का जोड़ा
उड़ गया ....
नये ठौर की तलाश में ..
वहां अब उग आयीं है
कुछ झुग्गियां
जहाँ कुत्ते नहीं रहते
रहते है आदमी
जिन्हें मंजूर होता है
नरक ,
दो वक्त की रोटियों के बदले
शहर बड़ा हो गया
और नदी मर गयी ..
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
.. नीरज कुमार नीर
(बात अगर दिल तक पहुचे तो टिप्पणी के माध्यम से समर्थन अवश्य दें )
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चित्र गूगल से साभार
प्रवाह सदा ही युवा रहता है।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब !
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteसार्थक ......
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना. नदियों का मर जाना हमारे जीवन और प्रकृति के साथ खिलवाड़ है, फिर भी... हर रोज़ नदियाँ मर रही हैं. उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति -
ReplyDeleteआभार आपका-
सादर -
गहन सोच एवँ संवेदनशील अभिव्यक्ति के साथ बहुत ही सार्थक एवँ प्रभावशाली रचना ! अति सुंदर !
ReplyDeleteशायद इस त्रासदी के लिए मनुष्य से ज्यादा कोई जिम्मेदार नहीं ...
ReplyDeleteसार्थक और प्रभावी रचना ...
अति सुंदर .......
ReplyDeletenadi ke sath jeevan ko jodna sundar darshan hai ...
ReplyDeleteबात दिल तक पहुँचती है भाई..सार्थक लेखन।..बधाई।
ReplyDeleteबहुत गहरी रचना है. सीधे ह्रदय को छू रही रही है.
ReplyDeleteMore sensitive article.
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी! सादर नमन! सुन्दर रचना! प्राकृतिक त्रासदी पर!
ReplyDeleteधरती की गोद