Thursday 12 June 2014

तुम बिन कैसे बीती रजनी


तुम बिन कैसे बीती रजनी, 
कैसे बीता वासर छिन छिन,

बुलबुल ख़ुशी के गाये  गीत, 
आया नहीं  मेरा मन मीत.
कोंपल कुसुम खिले वन उपवन 
बेकल रहा विरह में पर मन.
तुम बिन कितना विकल रहा मैं 
रातें काटी तारे गिन गिन .
तुम बिन कैसे बीती रजनी, 
कैसे बीता वासर छिन छिन.

बिना सुर ताल हुआ संगीत 
तुम बिन सजा ना कोई गीत.
काठ बांसुरी सा मेरा तन ,
गूंजे स्वर जो धरो अधरन.
तुम बिन सूने सांझ सबेरे 
तन्हा रैना गुमसुम हर दिन.
तुम बिन कैसे बीती रजनी, 
कैसे बीता वासर  छिन छिन.
वासर : दिवस, दिन 

नीरज कुमार नीर
आप इस गीत को निम्नलिखित लिंक पर सुन भी सकते हैं, तो उसे अवश्य सुने और अपने कमेंट भी अवश्य दें :    https://soundcloud.com/parul-gupta-2/tum-bin 

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना शुक्रवार 13 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. शुक्रिया दिग्विजय अग्रवाल जी.

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  3. वाह बहुत खूब

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  4. सुन्दर गीत और उतना ही सुन्दर गायन भी.

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  5. विराह्की बेकली बखूबी लिखी है

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  6. सुंदर रचना

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  7. सुंदर रचना विरह वेदना को दर्शाती ..विरह मन को बहुत कचोटता है ही
    भ्रमर ५

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  8. बुलबुल ख़ुशी के गाये गीत,
    आया नहीं मेरा मन मीत,
    कोंपल कुसुम खिले वन उपवन
    बेकल रहा विरह में पर मन.
    तुम बिन कितना विकल रहा मैं
    रातें काटी तारे गिन गिन .
    तुम बिन कैसे बीती रजनी,
    कैसे बीता वासर छिन छिन.
    बहुत बढ़िया

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  9. प्रेम के भाव गीत के माध्यम से दिल के तारों को झंकृत कर रहर हैं ... सुन्दर रचना ...

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  10. सुन्दर गीत, साभार! आदरणीय नीरज जी!
    धरती की गोद

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