तुम बिन कैसे बीती रजनी,
कैसे बीता वासर छिन छिन,
बुलबुल ख़ुशी के गाये गीत,
आया नहीं मेरा मन मीत.
कोंपल कुसुम खिले वन उपवन
बेकल रहा विरह में पर मन.
तुम बिन कितना विकल रहा मैं
रातें काटी तारे गिन गिन .
तुम बिन कैसे बीती रजनी,
कैसे बीता वासर छिन छिन.
बिना सुर ताल हुआ संगीत
तुम बिन सजा ना कोई गीत.
काठ बांसुरी सा मेरा तन ,
गूंजे स्वर जो धरो अधरन.
तुम बिन सूने सांझ सबेरे
तन्हा रैना गुमसुम हर दिन.
तुम बिन कैसे बीती रजनी,
कैसे बीता वासर छिन छिन.
वासर : दिवस, दिन
नीरज कुमार नीर
आप इस गीत को निम्नलिखित लिंक पर सुन भी सकते हैं, तो उसे अवश्य सुने और अपने कमेंट भी अवश्य दें : https://soundcloud.com/parul-gupta-2/tum-bin
आपकी लिखी रचना शुक्रवार 13 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
शुक्रिया दिग्विजय अग्रवाल जी.
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर गीत और उतना ही सुन्दर गायन भी.
ReplyDeleteविराह्की बेकली बखूबी लिखी है
ReplyDeletebahut sundar rachna
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर रचना विरह वेदना को दर्शाती ..विरह मन को बहुत कचोटता है ही
ReplyDeleteभ्रमर ५
बुलबुल ख़ुशी के गाये गीत,
ReplyDeleteआया नहीं मेरा मन मीत,
कोंपल कुसुम खिले वन उपवन
बेकल रहा विरह में पर मन.
तुम बिन कितना विकल रहा मैं
रातें काटी तारे गिन गिन .
तुम बिन कैसे बीती रजनी,
कैसे बीता वासर छिन छिन.
बहुत बढ़िया
प्रेम के भाव गीत के माध्यम से दिल के तारों को झंकृत कर रहर हैं ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteसुंदर विरह गीत .
ReplyDeleteसुन्दर गीत, साभार! आदरणीय नीरज जी!
ReplyDeleteधरती की गोद