कैलाश पर शिव लोक में
था सर्वत्र आनंद.
चारो ओर खुशहाली थी
सब प्यार में निमग्न.
खाना पीना था प्रचुर
वसन वासन सब भरपूर.
जंगल था, लताएँ थी
खूब होती थी बरसात,
स्वच्छ वायुमंडल ,
खुली हुई रात.
धीरे धीरे नागरिकों ने
काट डाले जंगल
बांध कर नदियों को
किया खूब अमंगल.
एक बार पड़ गया
बहुत घनघोर अकाल.
चारो ओर मचा
विभत्स हाहाकार.
नाच उठा दिन सबेरे
विकराल काल कराल.
तिलमिलाने लगे सब भूख से
नोच खाने को तैयार.
चंद्रचूड़ का नाग झपटा
गणपति के मूषक पर,
कार्तिकेय का सारंग
टूट पड़ा नाग पर.
सब भीड़ गए एक दुसरे से गण.
फ़ैल गयी अराजकता सर्वत्र
बेचैन हुआ उमा का मन.
जाकर बोली शिव से
प्रभो! शम्भु , दीनानाथ.
ऑंखें खोलिए ,
तोड़िए समाधि , देखिये
फैली हुई है कैलाश में
यह कैसी व्याधि.
कोई लोक लाज नहीं
नहीं बचा संस्कार..
एक टुकड़ा रोटी हेतू
रहे एक दूजे को मार .
आप ही कुछ कीजिये
इसका समाधान.
मुस्काये शिव जी
आँखें खोली, कहा,
देवी क्यों हो परेशान.
भूख प्रकृति का
अटल सत्य है.
भूख मिटाना प्राणी का
प्रथम कृत्य है ..
भूख से ही चल रहा
जगत व्यापार..
खाने की जुगत
है प्राणी का स्वाभाविक व्यवहार.
जहाँ हो भूख
वहां शांति नहीं होती.
जठराग्नि की दाह
होती है बड़ी प्रबल.
बदल देती है सभ्यताएं.
हिला देती है
सत्ता की चूलें
सबल हो जाता है वह भी
जो होता है निर्बल ..
….. #नीरज कूमार नीर
चित्र गूगल से साभार
#kaiash #neeraj_kumar_neer #bhookh #भूख #समाधि
#kaiash #neeraj_kumar_neer #bhookh #भूख #समाधि
बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteयह कैसी व्याधि.
ReplyDeleteकोई लोक लाज नहीं
नहीं बचा संस्कार..
एक टुकड़ा रोटी हेतू
रहे एक दूजे को मार .
आप ही कुछ कीजिये
इसका समाधान.
मुस्काये शिव जी
आँखें खोली, कहा,
देवी क्यों हो परेशान.
भूख प्रकृति का
अटल सत्य है.
बहुत ही सुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसंसार के समस्त अविष्कार भूख (किसी भी प्रकार की) का ही परिणाम हैं.........नए विचारों को प्रेषित करती पंक्तियाँ...बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावी रचना ... सच लिखा है भूख हर बात को भुला देती है ... हर नियम बदल देती है ...
ReplyDeleteभूख से मरने वालों को कह दो मेरे सुहृद भाई।
ReplyDeleteकाशी में भी कैलाशी भूखे को भोज्य कराते भाई॥
मंदिर-मस्जिद महात्म इनका विचलित कों भाई।
मातु अन्यपूर्णा पास विराजें देतीं सभी को खिलाई॥
मंगल काशी की महिमा न्यारी देखा सभी नें भाई।
जो आता स्वागत करता निज वाणी बल विद्या भाई॥
बिलकुल सहमत हूँ रचना के सार से.
ReplyDeleteकहां से कहां लाकर पटका है सारतत्व को। बहुत सुन्दर।
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