Monday, 26 October 2015

अब आँखों से ही बरसेंगे

मित्रों इस वर्ष भारत के कई हिस्सों में भयानक सूखा पड़ा है ... खरीफ की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गयी है  । भारत में किसान वैसे ही बदहाल है ऐसे में अकाल उनके लिए कोढ़ में खाज जैसी  स्थिति उत्पन्न कर देता है । बड़े शहरों में बैठकर गाँव के किसानों की स्थिति का अंदाजा लगाना जरा मुश्किल काम है पर यकीन मानिए उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है । किसानो के इसी दर्द को मैंने अपनी इस कविता में समेटने का प्रयत्न किया है । देखिये अगर मैं उनके दर्द के कुछ हिस्से को भी अगर आप तक पहुंचा पाऊँ तो लिखना सार्थक होगा । तो प्रस्तुत है यह कविता :
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अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे

शोक है
मनी नहीं खुशियाँ
गाँव में इस बार
दशहरा पर
असमय गर्भ पात हुआ है
गिरा है गर्भ
धान्य का धरा पर
कृषक के समक्ष
संकट विशाल है
पड़ा फिर से  अकाल है
खाने के एक निवाले को
रमुआ  के बच्चे तरसेंगे।
अंबर से मेघ...........

तीन साल की पुरानी धोती
चार साल की फटी साड़ी
अब एक साल और
चलेगी
पर भूख का इलाज कहाँ है
भंडार में अनाज कहाँ है
छह साल की  मुनियाँ
अपने पेट पर रख कर हाथ
मलेगी
टीवी पर चीखने वाले
बिना मुद्दे के ही गरजेंगे।
अंबर से मेघ...............

व्यवस्था बहुत  बीमार है
अकाल सरकारी त्योहार है
कमाने का खूब है
अवसर
बटेगी राहत की रेवड़ी
खा जाएँगे  नेता,
अफसर
शहर के बड़े बंगलों में
कहकहे व्हिस्की में घुलेंगे।
अंबर से मेघ,,,,,,,,,,,,,,,,

रमेशर छोड़ेगा अब गाँव
जाएगा दिल्ली, सूरत, गुड़गांव
जिंदा मांस खाने वालों से
नोचवाएगा
तब जाकर
दो जून की रोटी पाएगा ।
पीछे गाँव में बीबी, बच्चे
मनी ऑर्डर की राह  तकेंगे
पोस्ट मैन भी कमीशन लेगा
तब जाकर
चूल्हा जलेगा
बाबा बादल की आशा में
आसमान को सतत तकेंगे।

अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे
..... नीरज कुमार नीर
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Wednesday, 21 October 2015

एक प्रार्थना माँ से

आप सभी मित्रों को दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनाएं । प्रस्तुत है इस अवसर पर एक प्रार्थना गीत ।
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जो कुछ भी है मेरा वह
सब तुम्ही को है समर्पण
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण

रूप, शक्ति, भौतिक काया
भ्रम, अज्ञान, असत छाया
क्षितिज पार जो विभास है
सर्व  उसमे हो विसर्जन
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण

जले हृदय मेरे  रावण
प्रेम भाव मानस  पावन
रोम रोम में राम बसे
कैसा भी तर्जन गर्जन
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण

ऐसे मम नाशो दुर्गति
बढ़े गति मंजिल हो मुक्ति
तेरा करूँ तुझे वापस
कटे उलझे सारे बंधन
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण
-- नीरज कुमार नीर --
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Saturday, 17 October 2015

सत्य का बोध

तेजी से घूम रहे चक्र पर
हम ठेल दिये गए हैं
किनारों की ओर
जहां
महसूस होती है सर्वाधिक
इसकी गति
ऊंची उठती है उर्मियाँ
जैसे जैसे हम बढ़ते हैं
केंद्र की ओर
सायास
स्थिरता बढ़ती जाती है
प्रशांत हो जाती है तरंगे
सत्य का बोध
अनावृत होने लगता है
अनुभव होता है एकात्म का ....
.............. नीरज कुमार नीर
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