क्या खाने को चखा
खाने की शिकायत करने
से पहले?
क्या परखा उसके गुण
दोषों को या
यूँ हीं चाँद टेढ़ा कर लिया ?
ये आदत है तुम्हारी,
अबाध स्वतंत्रता से
उपजी
एक बुरी आदत .
लंबी गुलामी का असर
हो गया है
तुम्हारे मस्तिष्क
पर.
तुम किनारे पर बैठ
समुन्दर को छिछला
बताते हो .
किनारे पर जमा
गन्दगी को देख
सागर की प्रकृति
बताते हो.
ये गन्दगी सागर का
दोष नहीं
यह दोष है तुम्हारा.
जो समझते हैं स्वयं
को ज्ञानी
अपने सीमित ज्ञान के
साथ.
क्या पन्ने पलटे
उपनिषद , गीता के कभी
कभी कोशिश की तत्व
जानने की.
चार पन्ने की कोई
किताब पढ़ी और
सबको झूठा कह दिया.
तुम क्यों नहीं
तलाशते कोई और सागर,
लेकिन नहीं
वहाँ आज़ादी नहीं
बुरा कहने की .
ये तुम्हारे
संस्कारों का ही दोष है .
तुम नंगा होना चाहते हो,
तुम्हे सत्य और झूठ
से मतलब नहीं है.
तुम्हे नंगा होना
अच्छा लगता है .
खासकर गैरों के
सामने .
... नीरज कुमार
‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
क्या आप मेरे विचारों से सहमति रखते हैं.
ये तुम्हारे संस्कारों का ही दोष है .
ReplyDeleteतुम नंगा होना चाहते हो,
तुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
खासकर गैरों के सामने,,,,,
बहुत सुंदर रचना ,,,,
आप भी फालोवर बने,मुझे खुशी होगी,,,
RECENT POST: पिता. .
बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी.
Deleteउत्तम रचना
ReplyDeleteतुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
खासकर गैरों के सामने .
अच्छी पंक्तिया
सादर
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
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शुक्रिया
Deleteसुन्दर भाव. बहुत अच्छी रचना लगी नीरज जी.
ReplyDeleteबहुत आभार श्रीमान.
Deleteतुम नंगा होना चाहते हो,
ReplyDeleteतुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
खासकर गैरों के सामने .
सुंदर भावपूर्ण, अर्थपूर्ण, सीधा और सही सन्देश देती सुंदर प्रस्तुति.
रचना जी बहुत बहुत आभार.
Deleteअपूर्ण ज्ञान से उपजा अज्ञान ऐसे ही होता है. फिर भी यह अच्छा है कि समझ कर मानने की आज़ादी तो है. जहां सोच पर पाबंदी वहाँ धर्म भी अपना अर्थ खो देता है...
ReplyDeleteचार पन्ने की कोई किताब पढ़ी और
सबको झूठा कह दिया.
बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.
बहुत बहुत शुक्रिया, डॉ जेन्नी शबनम जी, आपके समर्थन का बड़ा आभारी हूँ. मेरे ब्लॉग पर आपका आगमन मेरे मनोबल को बढ़ाने वाला है..
Deleteसादर
सच कहा है ... पूर्ण ज्ञान नहीं लेते ओर कमियां निकालना शुरू हो जाते हैं ...
ReplyDeleteआज ये जैसे आम बात हो गई है ...
श्रीमान दिगंबर नासवा जी, आपका बहुत बहुत आभार.
Deleteसादर,
bahut sundar rachna .isme aakosh bhi hai aur chetavani bhi.
ReplyDeleteबहुत आभार..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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शुक्रिया
Deleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति..
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