Friday 15 January 2016

नया साल

एक साल खत्म हुआ
नया साल आ रहा है
समय कितनी जल्दी बीत जाता है
देखते देखते बीत गए
कितने बरस
गहरे उच्छ्वास के साथ मन ने कहा
समय सुन रहा था मुझे
उसने मुस्कुरा कर कहा
बीत तो तुम रहे हो मेरे बच्चे
मैं तो वहीं का वहीं हूँ
अनंत काल से
आगे भी वहीं रहूँगा
तुम्हारे पुनः पुनः पुनरागमन के दौरान
तुम्हारे निर्वाण तक
जब मैं हो जाऊँगा
अर्थहीन
तुम्हारे लिए।
नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer
#new_year

10 comments:

  1. मानव के आत्मीय विकास की पंक्तियाँ

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-01-2016) को "सुब्हान तेरी कुदरत" (चर्चा अंक-2224) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुंदर । सच है वक़्त की सच्चाई ।

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  4. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  5. सच है समय तो रहता है वहीं ... बीत तो हम जाते हैं साल दर साल ...

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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