जब सम्मान के साथ होता है खिलवाड़,
आबरू होती है बार बार
तार तार.
बचाव की नहीं होती
कोई उम्मीद,
सीमा की जाती है
अतिक्रमित लगातार.
मर्यादा का किया जाता है,
खुला उल्लंघन.
जब संकट होता है अस्तित्व का,
निस्सहाय, बेबस, निरावलंब
स्त्री हो जाती है पागल.
मिटा देना चाहती है
आतातायियों के जुल्म को,
कर देना चाहती है उसका समूल नाश.
नदी स्त्री है,
नदी पागल हो गयी है..
........नीरज कुमार ‘नीर’
(चित्र गूगल से साभार)
सच सौ फीसदी. और वो कोसी जैसी हो तो फिर मत पूछिए.
ReplyDeleteनदी पागल हो गयी .................
ReplyDeleteसटीक रचना !!
बहुत सुन्दर भाव की अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
बहुत बढ़िया लिखा
ReplyDeletevisit here
इस सॉफ्टवेर से इन्टरनेट की स्पीड 200% बढाएं
गूगल की कुछ मजेदार ट्रिक
Steek sundr abivykti...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी ... समय राजते चेतना होगा इस समाज को ... नारी मन और नदी के प्रवाह को समझना होगा ...
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और प्रभावी प्रस्तुती, अभी भी समय है हमे सजग होकर नारी को सम्मान देना ही होगा नही तो एक दिन प्रलय तो आएगी ही।
ReplyDeletewaah bahut khoob
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गूगल की नई योजना "प्रोजेक्ट लून"....ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजब सारी हदें पार हो जाती हैं तो यही होता है ... प्रभावी रचना
ReplyDeleteसब बंध तोड़ बह निकली वह..
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावी रचना ……….विचारोत्तेजक
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावी रचना …….विचारोत्तेजक
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteसब इंसान की करतूत है , बहुत कुछ सोचने पे विवश करती सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
ReplyDeleteकेदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !
Sad, but true. Man has alwayed played with nature terming it as development. When nature plays with man, we call it calamity.
ReplyDeleteसही कहा आपने - द्रवित अस्मिता की उफान >> http://corakagaz.blogspot.in/2013/06/pralay-plavan.html
ReplyDeleteप्रभावी रचना
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