Tuesday 2 February 2016

मिलन की बेला :गीत

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..

जब विहँसे अवदात कौमुदी
मुकुलित कुमुदों के आँगन में
तुम मुझसे मिलने आना प्रिय
उज्ज्वल तारों के प्रांगण में
मैं वहाँ मिलूंगा लेकर बाहों का गलहार सखी रे

पीली साड़ी चूनर धानी
समीरण सुवासित सी आना
ऊसर उर के खालीपन को
प्रेम पीयूष से भर जाना
सुर लोक की अप्सरा सी मुस्काती गुलनार सखी रे

आँखों से ही बातें होंगी
शब्दों के सेतू भंग रहे
उन्माद भरे जीवन पल में
बस प्रेम रहे आनंद रहे
खिल उठेगा रूप करूँ जब होठों से शृंगार सखी रे

पत्थर गाएँगे गीत मधुर
तरुवर संगीत सुनाएँगे
ठिठक रुक जाएगी सरिता
धरा और नभ मुस्कायेंगे
बदल जाएगा सम्पूर्ण जगत का व्यवहार सखी रे

हम गीत प्रेम के गाएँगे
श्याम भँवर  के जग जाने तक
पूर्व देश में दूर क्षितिज पर
स्वर्ण कलश के उग आने तक
गीत है समर्पित तुमको ले जाओ उपहार सखी रे

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..
.............   #neeraj_kumar_neer  
......... #नीरज कुमार नीर ..........
#love #geet #valentine 

Monday 1 February 2016

इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे

इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे
बेवफाई  वो  करें  वफा  ही लगे

पास कितने दिल के रहता है वो मेरे
फिर भी जाने क्यूँ जुदा जुदा ही लगे

अच्छे जब उन्हें रकीब लगने लगे
बात मेरी तब से तो खता ही लगे

जी रहा हूँ क्योंकि मौत आई नहीं
बाद तेरे जीस्त   बेमजा ही लगे

रहता है खुश उसकी मैं सुनूँ गर सदा
जो कहूँ अपनी उसे बुरा ही लगे

और आखिर में किसानों के लिए :

खेत सूखे औ अनाज घर में नहीं
जिंदगी से बेहतर कजा ही लगे

नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो

2212   2212    2212    22
दर्पण जमी हो धूल...... तो शृंगार कैसे हो
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो

महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो

मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज
तो राम जाने .......देश का उद्धार कैसे हो

सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू
तुम्ही कहो .......खेतों में पैदावार कैसे हो

ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से
मुर्दा शहर में जीस्त  का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer
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