2212 2212 2212 22
दर्पण जमी हो धूल...... तो शृंगार कैसे हो
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो
महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो
मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज
तो राम जाने .......देश का उद्धार कैसे हो
सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू
तुम्ही कहो .......खेतों में पैदावार कैसे हो
ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से
मुर्दा शहर में जीस्त का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर
दर्पण जमी हो धूल...... तो शृंगार कैसे हो
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो
महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो
मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज
तो राम जाने .......देश का उद्धार कैसे हो
सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू
तुम्ही कहो .......खेतों में पैदावार कैसे हो
ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से
मुर्दा शहर में जीस्त का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer
बहुत खूब ... सभी शेर लाजवाब ... व्यंग की धार लिए तीखे ....
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