पढ़िये, लोकतन्त्र के कुछ दोहे :
अच्छा लगे तो लोकतन्त्र की जय बोलिए
लोकतन्त्र में देखिये , नित्य नवीन नजीर।
पढे लिखे सो अर्दली, अनपढ़ बने वजीर॥ 1
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लोकतन्त्र की दुर्दशा, …. भारत माता रोय ।
अयोध्या में देखिए, रावण पूजित होय ॥ 2
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लोकतंत्र को है लगा, कैसा कहिए रोग ।
झूठ, कुटिल, पाखंड को, सुंदर खूब सुयोग॥ 3
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भीड़, भेड़ अंतर नहीं, कुछ भी कहा न जाय।
लोकतन्त्र में बागुला, हंस सम मान पाय ॥ 4
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स्वयं भए कुपात्र जो, औरन तिलक लगाय ।
नैतिकता के सूरमा, हेरत नैन झुकाय ॥ 5
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कर जोड़ के खड़ा रहे, लाज शर्म को खोय।
बात करे ईमान की, डूब मरे सब कोय॥ 6
----------------- नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
जय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 22/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-11-2015) को "काँटें बिखरे हैं कानन में" (चर्चा-अंक 2168) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, हिन्दी फिल्मों के प्रेरणादायक संवाद - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....