Tuesday, 9 April 2013

मैं सोया रहा खुली आँखों से रात भर


मैं सोया रहा खुली आँखों से रात भर
तुम मुझमे ही जागते रहे भोर तलक .

कब से थी ख्वाहिश तेरे पहलु में बैठूं ,
मैं तुम्हे देखूं, देखते मेरी ओर अपलक.

कुछ नहीं है तेरे मेरे दरम्याँ फिर भी
मुठ्ठी  भर ख़ामोशी  है और  फलक.

तुम जितनी दूर रहती हो मुझसे
मिलन की बढती  है और ललक.

गालों  पर जो लुढका  पानी खारा
 स्वाद फैल गया दिल के छोर तलक .

…………….. नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer 

16 comments:

  1. वाह बहुत खूब बेहतरीन रचना !!!

    RECENT POST: जुल्म

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  2. नीरज जी पहली बार आपको पढ़ा ...बहुत सुन्दर लिखते हैं आप

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    1. बहुत आभारी हूँ आपका.

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  3. सुन्दर रचना ...
    अंतिम दो पंक्तियाँ तो बहुत बढ़िया लगी !

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    1. शुक्रिया सुमन जी.

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  4. सुन्दर भाव. आखिरी पंक्तियाँ लाजवाब है.

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  5. अच्छी ख्वाहिश है की उनको देखूं देखता हुआ अपलक ...
    उम्दा शेर है ...

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  6. बहुत खूब .....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.....

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  7. बहुत शुक्रिया.

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  8. नव सम्वत्सर की वधाई ! रचना में भाव पक्ष प्रबल है |
    झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ज)स्वर्ण-कीट)(१) मैली चमक
    हाथ में जुगनू पकड़ कर, मलिन हुआ ‘स्पर्श’ |
    ‘लोभ की मैली चमक’ से, उन्हें हुआ है हर्ष ||

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  9. बहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सार्थक‍ अभिव्यक्ति.

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  10. बहुत सुन्दर रचना ..

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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