मैं सोया रहा खुली आँखों
से रात भर
तुम मुझमे ही जागते रहे
भोर तलक .
कब से थी ख्वाहिश तेरे
पहलु में बैठूं ,
मैं तुम्हे देखूं, देखते
मेरी ओर अपलक.
कुछ नहीं है तेरे मेरे
दरम्याँ फिर भी
मुठ्ठी भर ख़ामोशी
है और फलक.
तुम जितनी दूर रहती हो
मुझसे
मिलन की बढती है और ललक.
गालों पर जो लुढका
पानी खारा
स्वाद फैल गया
दिल के छोर तलक .
…………….. नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
waaaaaah bhot khub waaaaah
ReplyDeleteवाह बहुत खूब बेहतरीन रचना !!!
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
नीरज जी पहली बार आपको पढ़ा ...बहुत सुन्दर लिखते हैं आप
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आपका.
Deleteसुन्दर रचना ...
ReplyDeleteअंतिम दो पंक्तियाँ तो बहुत बढ़िया लगी !
शुक्रिया सुमन जी.
Deleteसुन्दर भाव. आखिरी पंक्तियाँ लाजवाब है.
ReplyDeleteशुक्रिया..
Deleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteअच्छी ख्वाहिश है की उनको देखूं देखता हुआ अपलक ...
ReplyDeleteउम्दा शेर है ...
बहुत शुक्रिया.
Deleteबहुत खूब .....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.....
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteनव सम्वत्सर की वधाई ! रचना में भाव पक्ष प्रबल है |
ReplyDeleteझरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ज)स्वर्ण-कीट)(१) मैली चमक
हाथ में जुगनू पकड़ कर, मलिन हुआ ‘स्पर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’ से, उन्हें हुआ है हर्ष ||
बहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सार्थक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDelete