धर्म अफीम की तरह है, धर्म मानवता के विकास में बाधक है, धर्म शोषण का सबसे बड़ा हथियार है । सिंह साहब धाराप्रवाह सभा को संबोधित कर रहे थे। सामने बीस पच्चीस लेखकों, कवियों की जमात बैठी थी, जो उनके हर कहे की सहमति में अपना सर हिला रही थी। सिंह साहब जाने माने कवि थे एवं कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके थे, अतः सभी के लिए स्पृह्य थे। सब उनकी नजर में आना चाहते थे। सिंह साहब पूरे जोशो खरोश के साथ अपना भाषण जारी रखे हुए थे, जिसमे वे बता रहे थे कि हिन्दू धर्म कैसे बुराइयों की खान है। हमे कैसे धर्म से जुड़े सभी स्तंभों एवं मानकों का विरोध करना चाहिए ....... पूरे हौल में में उनकी आवाज गूंज रही थी, सभी सम्मान भाव से उन्हें सुन रहे थे। अचानक बोलते बोलते सिंह साहब रुक गए। सभा में उपस्थित सभी लोग सकते में आ गए कि आखिर हुआ क्या .... सिंह साहब चुप क्यों हो गए, कहीं उनकी तबीयत तो खराब नहीं हो गयी ? थोड़ी देर बाद सिंह साहब ने स्वयं ही चुप्पी थोड़ी और कहा “ अभी अजान हो रहा है , अजान के वक्त हम लोग शांति से बैठेंगे और अजान खतम हो जाने के बाद मैं अपनी बात आगे कहूँगा “ बगल के मस्जिद से अजान की आवाज सभा स्थल पर गूंज रही थी अल्लाह हू अकबर अल्लाह ........ सभा में उपस्थित सभी लोग शांत भाव से बैठे रहे ।
..... नीरज कुमार नीर..........
..... नीरज कुमार नीर..........
#धर्मनिरपेक्षता, #भारत, #बुद्धिजीवि, #अजान, #हिन्दू, #धर्म
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-11-2015) को "मैला हुआ है आवरण" (चर्चा-अंक 2175) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर प्रयास
ReplyDeleteसुंदर प्रयास
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन का ७ वां बलिदान दिवस , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteकाश, वास्तव में ऐसा ही हो...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।
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