अभी हैदराबाद में बम विस्फोट हुए, कई निरपराध मारे गए , जिसमे हिंदू थे , मुसलमान भी. बम ने फटने के बाद कोई भेद नहीं किया मारने में हिंदू और मुस्लमान में, उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था कि बम चलाने वाले का मजहब क्या है. इसी बात से प्रेरित है मेरी प्रस्तुत कविता :
बम ना जाने जात
कुजात ,
बम जाने ना मजहब की बात.
बम ना जाने धर्म
इमान,
बम देखे ना हिंदू,
मुसलमान.
बम का बस है एक ही
काम
बम लेता इंसानो की जान .
बम ना पढता कलमा ,
आयत ,
ना उसे बाइबिल ,
गीता का ज्ञान.
बम का एक ही धर्म
जहाँ में
बम लेता इंसानो की जान.
जब तक बम हाथो में
है,
तब तक ही बम का है नाम.
हाथों से जो छूट गया
फिर
बम का तो अपना ही
काम
बम तो केवल बम है,
उसके लिए
क्या हिंदू , क्या
मुसलमान .
बम का बस है एक ही
काम
बम लेता
इंसानों की जान
आतंकी का मजहब होता
है,
बम का मजहब नहीं होता,
बम जब फटता है तो
नाम किसी का नहीं
पूछता.
सुनो आतंकवादियों
सुनो:
बम फोड़ना इससे पहले
ऐसा कुछ इजाद कर लाओ
मजहब के नाम पर क़त्ल
करे
ऐसा बम बनाकर लाओ.
............ नीरज
कुमार ‘नीर’
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