सूखे फूलों को कोई उठाने नहीं आता कब से
मैं रूठा हूँ, कोई मनाने नहीं आता कब से
बहार, रंग , नूर, सब फ़ना हो गए
मैं तन्हा बाग में बैठा रहा कब से .
दिल की आरजू की भी उमर होती होगी
मेरे दिल में कोई आरजू नहीं अब, कब से .
अब फूल खिलें भी तो क्या ‘नीरज’
फूलों की कोई चाह्त नहीं रही कब से .
bahoot khoob janab :)
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका..
DeleteWaah! Bahoot sundar, Neeraj-jee...Man ko choon gayi yeh rachna
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया अनिमेष जी. ब्लॉग पर आने का बहुत धन्यवाद.
Deleteलाजवाब...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया अमृता तन्मय जी.
ReplyDeleteफूलों से नफ़रत करे, करते शूल पसंद ।
ReplyDeleteलेखक हैं नवगीत के, कवि रचते ना छंद ।
कवि रचते ना छंद, मग्न मतिमंद रहा हैं ।
*भा बहार नहिं रंग, बाग़ में कवि तन्हा हैं ।
सूख सरोवर नीर, मनुज कटता मूलों से ।
नीति-नियम कुल भूल, करे नफ़रत फूलों से ॥
बड़े प्यारे छंद.
Deleteबहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बहुत बहुत आभार दिनेश पारीक जी.
Deletekavineeraj.blogspot.in21 February 2013 07:16
ReplyDeleteआप जैसे लोगों की वजह से हिंदी काव्य जिन्दा रहेगा, वरना आजकल के अधिकांश कवि कविता के नाम पर क्या लिखते हैं, पता नहीं, ना रस, ना रंग, ना लय, ना गठन. आपको बहुत बहुत साधुवाद.
आप ने मेरी पोस्ट पर यह टिप्पणी की-
मैंने आपकी पोस्ट पर यह टिप्पणी की-
फूलों से नफ़रत करे, करते शूल पसंद ।
लेखक हैं नवगीत के, कवि रचते ना छंद ।
कवि रचते ना छंद, मग्न मतिमंद रहा हैं ।
*भा बहार नहिं रंग, बाग़ में कवि तन्हा हैं ।
प्रभा
सूख सरोवर नीर, मनुज कटता मूलों से ।
नीति-नियम कुल भूल, करे नफ़रत फूलों से ॥
पर आपने इसे प्रकाशित नहीं किया-
लिंक लिक्खाड़ अच्छी रचनाओं पर की गई मेरी काव्यात्मक टिप्पणियों का ब्लॉग है
४००० कुंडलियों में से ही यह कुंडली भी त्वरित प्रतिक्रिया है-
आशा है प्रकाशित करेंगे यह टिप्पणी-
आदरणीय रविकर जी, बहुत बहुत आभार आपका.
Deleteमै इस वाक्य का आशय नहीं समझ पाया "पर आपने इसे प्रकाशित नहीं किया."
सुन्दर रचना नीरज जी,
ReplyDeleteआभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए वैसे
कविवर रविकर जी की टिप्पणी अच्छी लगी !
शुक्रिया सुमन जी.
Deleteरविकर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteनीरज जी जय श्री राधे ...सुन्दर रचना उद्वेग अलग अलग रंग तो दिखाते ही हैं ....तमन्ना और आरजू रखना सम्हालना अच्छा होता है ...उम्र बनी रहे इसकी ...भ्रमर का दर्द और दर्पण में आप का स्वागत है
ReplyDeleteभ्रमर 5
बहुत स्वागत आपका काव्य सुधा में और बहुत बहुत आभार.
Deleteसूखे फूलों को कोई उठाने नहीं आता कब से
ReplyDeleteमैं रूठा हूँ, कोई मनाने नहीं आता कब से.....bahut galat bat .....manana to chahiye .....bahut bhawpurn rachna .....thanks ...
निशा जी बहुत बहुत आभार..
ReplyDeleteबेहद उत्तम प्रस्तुति | भावपूर्ण रचना | बधाई
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
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तुषार जी बहुत बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteदिल की आरजू की भी उमर होती होगी
ReplyDeleteमेरे दिल में कोई आरजू नहीं अब, कब से .
सच कहा है ... धीरे धीरे मर जाती हैं सभी आरजुएं ... उनकी उम्र बस प्यार से बडती है ....
बहुत शुक्रिया आपका.
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बंधू | बधाई
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
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दिल जब टूटता है तो सूखे पत्तों सा झरता है ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति..
शुक्रिया कविता जी.
Deleteबहुत शुक्रिया तुषार जी.
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