वागर्थ के अप्रैल 2015 अंक में प्रकाशित ....
आसमान से ऊपर
है एक सुन्दर बाग़
जहाँ रहती हैं परियां
नाजुक मुलायम
ऊन के गोले सी.
खिलते हैं सुवासित
सुन्दर फूल.
वहां बहती है एक नदी,
जिसमे परियां करती है कलोल,
उडाती है एक दुसरे पर छीटे,
जिससे होती है धरती पर
हल्की बारिश लेकिन
धरती रह जाती है प्यासी.
जब कभी नदी तोड़ती है तटबंध
आ जाती धरती पर बाढ़.
और सब कुछ हो जाता तबाह.
उस बाग़ में लग जाएगी आग.
एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा
जुड़ गया है वापस.
आदिवासी गाँव का एक लड़का
छोड़ेगा अग्निवाण.
जल जाएगा आसमान से ऊपर का बाग़.
अब आदिवासियों के गाँव में
नाचेगी परियां,
खिलेंगे महकते फूल,
बहेगी एक सुन्दर नदी.
नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
धन्यवाद आपका
ReplyDeletesundar abhivyakti .
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है.
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteसंसाधन जुटाता प्रतियोगी विश्व।
ReplyDeleteसुन्दर कविता |नीरज जी आभार |
ReplyDeleteसुन्दर, रोचक व पठनीय सूत्र
ReplyDeleteकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
शुक्रिया राहुल भाई ..
Deleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति नीरज जी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteलाज़वाब...
ReplyDeleteबहुत खूब ... लाजवाब भावपूर्ण प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर। आजायेंगी आदिवासिों की धरती पर वे परियाँ, खिलेंगेमहकते फूल और बहेगी एक सुंदर नदी।
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