Tuesday, 5 May 2015

राजपथ तक पहुंचाते हाथ

तुम सरपट दौड़ना चाहते हो
राजपथ पर
रास्ते जो पहुचाएंगे राजपथ तक
कांटो से भरे, गीले, दलदली हैं
तुम्हारे फूल से पैरों को अपनी हथेलियों पर उठाने
कई हाथ उभर कर आते हैं अज्ञात से
अनायास, अकस्मात
कुछ हाथों की ओर तुम पाँव बढ़ाते हो स्वयं ही
राजपथ तक पहुँचना चाहते हो
बिना छिले , बिना लस्त पस्त हुए
जिन हाथों पर पाँव रख कर
तुम आगे बढ़ना चाहते हो
उनमे कई बढ़ते हैं
केवल फूलों को छूने की कामना से
कहीं गिरा न दें तुम्हें काँटों पर
मुझे भय नहीं है
पंखुड़ियों के टूट कर बिखर जाने का
मुझे भय इस बात का है कि कहीं
टूट न जाये तुम्हारा
राजपथ तक पहुचने का
हौसला
मैं देखना चाहता हूँ तुम्हें
स्वर्ण सिंहासन पर
रत्न जड़ित मुकुट पहने हुए
........... नीरज कुमार नीर ............ #neeraj_kumar_neer

8 comments:

  1. बहुत खूब ... होंसला टूटने न पाए तो रौशनी जरूर मिलेगी ...

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  2. बहुत सुन्दर सार्थक सृजन ! बहुत बढ़िया !

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  3. ​इतना आसान कहाँ होता है फूलों तक पहुंचना , राजपथ के रास्तों को छूना भी ! हाथ रंग जाते हैं लहू से , शर्म से , स्वजनों का परित्याग करना पड़ता है लेकिन बहुत ऐसे भी हैं जिन्होंने छुआ है ये रास्ता और इसकी सबसे ऊंची मीनारें और उनके शिखर को भी , अपने हौसले से ! शानदार पंक्तियाँ नीर साब

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  4. Rajpath tak pahunchane ke maarg me bade bade dhokhe hai ..sundar rachna .

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति।

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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