Thursday, 9 May 2013

जब जब करो श्रृंगार प्रिये

जब जब करो श्रृंगार प्रिये
मैं एक  दर्पण बन जाऊं ।

मैं बनूँ प्रतिबिंब तुम्हारा
ओढ़ कर माधुर्य सारा
लालिमा तेरे अधरों  की
नैन का अंजन बन जाऊं..
जब जब करो श्रृंगार .......

वेणी में बन सजूं बहार
बन जाऊं सोलह श्रृंगार
अनुपम रूप तुम्हारा  प्राण
हार इक चन्दन  बन जाऊं।
जब जब करो श्रृंगार.........

तुम्हारे पायल की रुनझुन
मोहिनी गीतों की गुनगुन
बनकर दमकूं मैं कुमकुम
कुंडल कुन्दन बन जाऊं.
जब जब करो श्रृंगार........

टहक लाली सूर्ख महावर
टूट सके ना जीवन भर
मांग मध्य  अमर  सिंदूर
अमिट इक बंधन बन जाऊं .
जब जब करो श्रृंगार..........

तुम्हारे गजरे में महकूँ
हंसी में तुम्हारी चहकूँ
तुम्हारे  अंतस बसूं सदा
दिल की धड़कन  बन जाऊं

जब जब करो श्रृंगार प्रिये
मैं एक  दर्पण बन जाऊं
..................
नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 

27 comments:

  1. सरल शब्दोंमें अच्छी रचना !

    ReplyDelete
  2. अच्छी रचना ....
    मनभावन.

    अनु

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर भाव ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'
    latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

    ReplyDelete
  4. श्रृंगार रस से युक्त लेखनी ....वाह बहुत खूब

    ReplyDelete
  5. प्रेम मय ... भाव भरी रचना ...
    बहुत लाजवाब ...

    ReplyDelete
  6. अति सुन्दर काव्य कृति..

    ReplyDelete
  7. किसी कारणवश इतनी सुन्दर काव्य कृति पढाने से वंचित रह गया था पहले. सुन्दर सृजन.

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर और सरस रचना .....

    ReplyDelete
  9. बहुत खूबसूरत रुनझुन सी आवाज करती ये रचना ..श्रृंगार रस में डूबी हुई ..प्रेम से लबालब भरी हुई ..बहुत सुन्दर :-)

    ReplyDelete
  10. अर्थ सबसे बाद में दिया करें तो अरुचिकर नहीं लगेगा ! इस कारण कविता पर ध्यान ही नहीं जाता !!

    ReplyDelete
  11. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  12. जब करो श्रृंगार प्रिय…। सुन्दर रचना! साभार! आदरणीय नीरज जी!
    धरती की गोद

    ReplyDelete
  13. बहुत ही सुन्दर ................

    ReplyDelete
  14. बहुत बहुत सुंदर! वाह!

    ReplyDelete
  15. बहुत खूब श्रीमान

    ReplyDelete
  16. सुन श्रृंगार रस की ऐसी अभिव्यक्ति ,
    मन अन्तर्मन से भवभोर उठा,
    चंचलता शब्दो की ऐसी,
    ह्र्दय के तारों को प्यार का आभाष मिला ।।
    सुरेश मुस्कान शर्मा'सुमेश,उदयपुर (राजस्थान)

    ReplyDelete
  17. सुन श्रृंगार रस की ऐसी अभिव्यक्ति ,
    मन अन्तर्मन से भवभोर उठा,
    चंचलता शब्दो की ऐसी,
    ह्र्दय के तारों को प्यार का आभाष मिला ।।
    सुरेश मुस्कान शर्मा'सुमेश,उदयपुर (राजस्थान)

    ReplyDelete
  18. वाह शृंगार रस की अद्भुत अभिव्यक्ति
    भई अभिसारिका जैसी
    सुन पढ़ कर हृदय मुदित हो गया
    रचना थी कुछ ऐसी !

    ReplyDelete
  19. बहुत सूंदर

    ReplyDelete
  20. जवाब नहीं आपका

    ReplyDelete
  21. मानस पटल को हठात विचलित कर रहीं पँक्तियाँ जो बरबस अंतरतम के तंतुओं को झंकृत करने लगते हैं ।
    वाह
    उत्तमोत्तम ।

    ReplyDelete
  22. I feel very comfortable to read this poem because it have many sensitive feelings for simple man

    ReplyDelete
  23. Hello ! pl connect with me on dynamiclibran@gmail.com
    i am a film maker from mumbai.
    thanks !

    ReplyDelete
  24. प्रेम से होती तरंगित भावनाएं

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...