Saturday, 16 May 2015

पास तेरे रहूँ वक्त ठहर जाता है

पास  तेरे रहूँ   वक्त  ठहर  जाता   है
दुख दर्द गम जाने सब किधर जाता है ।

घड़ी खो देती मुसल्सल अपने मायने
कब रात  होती  है दिन उतर जाता है ।

बिगड़ी तो कब क्या बनेगी खुदा जाने
इक  पल फिर भी मेरा संवर जाता है।

जो हो होशमंद उसे वक्त का ख्याल हो
मुझे क्या वक्त कब आकर गुजर जाता है ।

हिले जो चिलमन-ए-दरिचाँ-ए-महबूब
रू –ए –आशिक देखिये निखर जाता है ।

खुले दर-ए-खुल्द दस्त से जो दस्त मिले
दौरे  गम खुशियों   में  बदल  जाता  है ।
-------------- नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer

11 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मैं रश्मि प्रभा ठान लेती हूँ कि प्राणप्रतिष्ठा होगी तो होगी , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
    ---------------

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर प्रेम भाव लिए ... अच्छी रचना ...

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर रचना ................... वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...