कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये
दस आनन थे रावण के
इनके हैं सौ- सौ सर।
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद,
मत्सर
रहे बजबजा
इनके भीतर
इनके भीतर
फिर भी ,
जरा नहीं शर्माए।
जरा नहीं शर्माए।
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये ।
पंडित था रावण ,
था, अति बलशाली ,
धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,
विवेकशून्य, मर्यादा से
खाली।
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य में
भयमुक्त हो, फूले नहीं
समाये।
उन्हें ही हक है, आगे आकर
रावण को आग लगाये ।
... नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
आनन : सर ,
सन्नाट कटाक्ष
ReplyDeleteबहुत उपयुक्त ! नीरज जी .
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-15/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -25 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
waaaaaaah;;kya kehne
ReplyDeleteसटीक सुंदर कटाक्ष !
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाए...!
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
"रावण, रावण को आग लगाये "......बहुत ही कटु सत्य
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
बहुत सटीक रचना --"रावण, रावण को आग लगाये "
ReplyDeleteअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
bilkul sach kaha apne. sunder rachana.
ReplyDeleteसटीक और अर्थपूर्ण बात
ReplyDeletebehut umda vyng hai badhai
ReplyDeleteफिर तो शायद रावण को जलाना ही मुश्किल हो जाए ... आज कहां मिलेंगे राम ... चहुँ ओर बसे जब रावण ...
ReplyDeleteसुन्दर अर्थपूर्ण रचना है ...
भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसार्थक सामयिक चिंतन भरी प्रस्तुति
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाये!
bahut hi badhiya
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