एक पुरुष करता है
अपनी स्त्री से बहुत प्यार.
वह उसे खोना नहीं चाहता है ,
उसपर चाहता है एकाधिकार ।
उसने डाल दी है
उसके पांवों में बेड़ियाँ.
स्त्री भी करती है
उससे बेपनाह मुहब्बत.
वह भी उसे खोना नहीं चाहती.
पर वह नहीं डाल पाती है
उसके पैरों में बेड़ियाँ.
बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.
नीरज कुमार नीर ..
Neeraj Kumar Neer
लेकिन ये प्यार की बेड़ियां ही तो हैं जो एक दूसरे को बांधे रखती हैं
ReplyDeleteहाँ प्यार की बेड़ियाँ जरूरी है पर अगर यह बेड़ियाँ इकतरफा हो तो स्थिति शोचनीय होती है । आभार आपका ।
Deleteअरे भाई कुछ डाल भी लेती हैं लगता है तुमने अभी तक नहीं देखी हैं । :)
ReplyDeleteफिर भी रचना सुंदर है ।
:)
Deleteनीरज जी कई बार अच्छा पैसा कमाने वाली महिलाएं भी बेड़ियों में बंधी रह जाती हैं...
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने
अनुषा जी आपका हार्दिक धन्यवाद। आपके कहे से मैं असहमत नहीं हूँ , लेकिन ज़्यादातर ऐसा होता है कि आर्थिक रूप से परनिर्भर स्त्रियाँ ऐसी स्थिति की ज्यादा शिकार होती हैं। :)
Deleteपुरुष समाज जो है ... अपनी मर्जी की करना चाहता है ... पर प्रेम की बेड़ियाँ तो खुद ही पड़ जाती हैं ....
ReplyDeleteजी बिलकुल सही । पर प्रेम की बेड़ियाँ तो दुतरफा होती है , अगर बेड़ियाँ एकतरफा हो तो बात गंभीर है ॥
Deleteआभार आपका ॥
ReplyDeleteस्त्री पीड़ा को सिद्दत से परिचय कराती कविता.
ReplyDeleteसच जब बाजार से किसी चीज की तरह प्यार खरीदा जाता है फिर वह प्यार कहाँ रहता है सौदा है एक समझोता है वेबसी का ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
अधिकांशतः यह प्रेम की बेड़ियाँ दुतरफा ही होती हैं, कुछ अपवादों को छोड़कर...
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