Sunday 12 August 2012

प्यार

हम अपने ही दिल के दुश्मन बन बैठे,
किसी अजनबी से हाय प्यार कर बैठे.
हमने इज़हार किया, वो मुस्कुराते रहे,
उनकी मुस्कराहट को  इकरार समझ बैठे.
उनकी निगाहें  खामोश थी,   लेकिन,
उनकी  खामोशी को ही प्यार समझ बैठे.
जुल्फों से खेलने की नहीं थी ख्वाहिश हमे,
हम तो उनकी बातों के तलबगार बन बैठे
उनकी बेरुखी का कोई  गिला नहीं ‘नीरज’
खंजर भी ना निकला और क़त्ल कर बैठे.
वो भुला दे हमे,  कोई गम नहीं है
हम भुलाने बैठे तो खुद को भुल कर बैठे.
                 नीरज कूमार “नीर”

2 comments:

  1. वाह...
    उनके जुल्फों से खेलने की नहीं थी ख्वाहिश हमे,
    हम तो उनकी बातों के तलबगार बन बैठे

    बहुत खूब...
    अनु

    ReplyDelete
  2. Shukriya Anu ji, bahut bahut shukriya.

    ReplyDelete

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